भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को त्रिलोकी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म (कृष्ण जन्माष्टमी) मथुरा की कारागार में मां देवकी के गर्भ से पूर्व कर्म संस्कार वश हुआ था । पिता का नाम वसुदेव था। श्रीकृष्ण विष्णु भगवान सभी सोलह कलाओं से युक्त अवतार थे इसीलिए इनको विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है, पर श्रीकृष्ण पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
पूर्ण अवतार व पूर्ण परमात्मा भिन्नार्थक शब्द है। वेद गवाही देते है कि परमात्मा कभी किसी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते है। वो जब जहां चाहे सशरीर प्रकट हो जाते है। मथुरा का राजा कंस जब अपनी बहिन देवकी की शादी के बाद विदाई कर रहा था उसी समय भविष्यवाणी, आकाशवाणी के रूप में उसे सुनाई दी कि देवकी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा और वैसा ही हुआ।
कंस ने अपने बचाव में सभी यत्न प्रयत्न किये । कंस ने वसुदेव को जेल में डाला पर राजा होकर के भी अपने साथ घटित होने वाली होतव्यता को टाल नहीं पाया इसी तरह हरियाणा के परम सन्त के ज्ञान का अगाध प्रवाह, नकली गुरुओं द्वारा हर तरीके का अवरोध उत्पन्न करने के बाद भी , यहां तक की उनको जेल में डलवाने के बाद भी कोई रोक नहीं पा रहा है । उन सन्त के सम्बन्ध में इस तरह की सैकड़ों भविष्यवाणियां पहले से मौजूद है कि ” विश्व विजेयता सन्त उत्तर भारत के हरियाणा प्रान्त में जन्म लेगें”
श्रीकृष्ण का जन्मदिन (कृष्ण जन्माष्टमी) एक यादगार तो हो सकता है पर त्योहार बिल्कुल नहीं । श्री कृष्ण जन्माष्टमी को मनाने से हमारा आवागमन का चक्र, नरक व चौरासी योनियों के भयंकर कष्ट से पीछा कभी नहीं छूट सकता । देवी भागवत स्पष्ट करती है कि विष्णु भगवान समेत शंकर व ब्रह्मा सभी जन्म मरण में हैं। कहने को इनकी आयु लम्बी है पर जिसका जन्म मरण है वो अविनाशी कैसे हुआ। और किस तरह पूर्ण परमात्मा कहा जा सकता है। जब उपास्य ही जन्म मरण में है तो श्रीकृष्ण की उपासना से उपासकों का पूर्ण मोक्ष कैसे सम्भव है। पृथ्वी लोक पर श्रीकृष्ण उर्फ विष्णु जितने समय तक रहे उतने समय तक कष्ट पर कष्ट झेलकर संघर्ष करते रहे।
विष्णु लोक को ही वैकुण्ठ धाम, गोलोक धाम आदि भिन्न नामों से क्षेत्रीय भाषा विभेद वश जाना व समझा जाता है जिस गीता के आधार पर ऋषि जन श्री कृष्ण को पूर्ण परमात्मा सिद्ध करते आये है उस पर , सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा उठाये गये विभिन्न मुद्दों व गीता के अनेक श्लोकों के गलत अनुवादों पर पुनर्विचार का सही व सटीक समय यही है।
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महाभारत में जिक्र है जिसमें श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन से मना करते है कि गीता ज्ञान उन्होने नहीं दिया उनके शरीर में कोई शक्ति प्रवेश कर गयी थी। विचार करना चाहिए जिस परमात्मा के शरीर में कोई शक्ति प्रवेश कर जाये तो वो परमात्मा कैसे हुआ ? जिनके वचनानुसार पाण्डवों ने तपस्या की फिर भी पाण्डवों को नरक में जाना पड़ा। वो परमात्मा कैसे हुआ ? यों तो इस बात के समर्थन में और भी प्रमाण है पर इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि गीता श्रीकृष्ण ने नहीं बोली। और ना ही श्रीकृष्ण पूर्ण परमात्मा हैं।
सबसे ज्यादा बखेड़ा गीता में आये व्रज शब्द को लेकर है तो उस व्रज शब्द का अर्थ संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से जाना ही है। सैकड़ों अनुवादकर्ताओं ने संस्कृत के हजारों ग्रन्थों में जहां तहां आये व्रज शब्द का अर्थ जाना ही किया है। व्याकरण की पुस्तक लघु सिद्धांत कौमुदी में भी व्रज का अर्थ जाना ही सिद्ध किया गया है। तो ऐसे में विष्णु भगवान के पूर्ण अवतारी श्रीकृष्ण को पूर्ण परमात्मा सिद्ध करने की फिक्र में व्रज के अर्थ का जिक्र आाना के रूप में अनुवाद कर्ता कर बैठे हैं । जो कि गलत है। गीता अनुवाद कर्ताओं को जब यह जब यह समझ आ जायेगा कि गीता श्रीकृष्ण ने नहीं बोली तो कुरूक्षेत्र के मैदान का गीता ज्ञान अपने आप समझ आ जायेगा। और यह भी समझ आ जायेगा कि श्रीकृष्ण पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
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कृष्ण जन्माष्टमी: कृष्ण जी ही सबसे बड़े भगवान यानि पूर्ण परमात्मा हैं?
समाज में यह ऊहापोह की स्थिति हमेशा से बनी हुई है कि कौन सबसे बड़ा भगवान। प्रायः शिवजी के पुजारी शिव को , तो विष्णु के पुजारी विष्णु को , कोई कोई ब्रह्मा विष्णु महेश को मिला कर पूर्ण परमात्मा बताता है , तो कोई दुर्गा को या फिर ओम के उपासक कालब्रह्म को पूर्ण परमात्मा बताने में डटे रहते है। इस उलझी हुई गुत्थी का प्रमाणयुक्त पूर्ण समाधान सन्त रामपाल जी महाराज ने दिया है। सन्त रामपाल जी महाराज के अनुसार वेदों में वर्णित कविर्देव ही पूर्ण परमात्मा है जो विभिन्न युगों मे भिन्न नामों से आते है और उन्हीं को श्रद्धालु गण कबीर कबिर कविर कबीरू कबीरन किब्रू आदि अनेक नामों से अपभ्रन्श रूप से बोलने लग जाते हैं। पूर्ण परमात्मा कविर्देव की यथार्थ पूजा विधि सन्त रामपाल जी महाराज के अतिरिक्त कोई नहीं जानता है।
यों तो जनश्रुतियों के अनुसार भी सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण पूर्ण परमात्मा नहीं है। ऋषि , मुनि व विद्वानजन सभी एक स्वर से श्रीकृष्ण को त्रिलोकी भगवान कहते है। त्रिलोक का मतलब जिसकी ब्रह्माण्ड के तीन लोक पर सत्ता हो। तीन लोक मतलब पृथ्वी लोक पाताल लोक व स्वर्ग लोक। तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज के ज्ञान से स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण भगवान की तीन लोकों पर पूर्ण सत्ता नहीं है वह सिर्फ तीन गुणों में से एक गुण सतो गुण के मालिक है। इस ब्रह्माण्ड के अन्दर तीन लोकों से ऊपर महास्वर्ग है जिसकी अधिष्ठात्री दुर्गा है। इसके अलावा और भी अन्य छोटे मोटे स्थान है। इस रहस्य से और अधिक पर्दा उठाने के लिये सन्त रामपाल जी महाराज की लिखित सृष्टि रचना पढ़ना जरूरी है।
कृष्ण जन्माष्टमी आन उपासना है इसमे जीव का आत्म कल्याण नहीं होने वाला।
श्रीकृष्ण को इष्ट रूप में चाहने वालों के लिये उनकी यह उपासना इष्ट उपासना तो हो सकती है। पर इस उपासना का सम्बन्ध आत्म कल्याण से बिल्कुल नहीं है। आत्म कल्याण के इच्छुक भगतो के लिये यह आन उपासना के तुल्य है। आत्म कल्याण का मतलब है आवागमन से मुक्ति। यदि श्रीकृष्ण की पूजा से सुख वैभव आना मानते हो तो भारत से ज्यादा धन, ज्ञान – विज्ञान उन विदेशियों के पास है जो श्रीकृष्ण को जानते तक नहीं है।
आपके सुख वैभव का कारण श्रीकृष्ण की पूजा नही है अपितु पिछले जन्मों में पूर्ण परमात्मा कविर्देव की भक्ति व सुपात्र सतगुरु को किया गया दान है। जरूरतमन्द भूखे प्यासे को कराया गया भोजन, दवा आदि का दान है। ऐसा करने से वह पुण्य पूर्ण परमात्मा कविर्देव के कोटे से आपके कोटे में संग्रहीत हो जाते है। वह पुण्य आपको अनेक जन्मों तक सुख देते रहते है। जिसको आप श्रीकृष्ण की कृपा मानते हों वह श्रीकृष्ण की कृपा थी ही नहीं। पूर्ण परमात्मा कविर्देव कौन है कहां रहते है, इसको भी सन्त रामपाल जी महाराज की पुस्तकों को पढकर जाना व समझा जा सकता है।
कृष्ण जन्माष्टमी को पर्व के रूप में मनाने से जीव कल्याण का सम्भव नहीं।
आजकल कोई भी त्योहार, त्योहार ना होकर फैशन का उपहार बन गया है , इससे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व अछूता नहीं है। जब तक ज्ञान नहीं था तब तक हम मनमुखी आचरण कर रहे थे ज्ञान होने पर उस रास्ते का त्याग उचित है जो सुनसान जंगल की तरफ जाता हो। और जिससे कोई प्रयोजन सिद्ध ना होता हो। श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाने से जीव का कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है अपितु उल्टे जीव का पैसा समय बरबाद हो रहा होता है।
गीता को सभी ग्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ माना जाता है। गीता में गीता ज्ञानदाता स्वयं किसी अन्य परमात्मा की शरण में जाने को कहता है। गीता ज्ञानदाता जिस पूर्ण परमात्मा की शरण में जाने को कहता है वह पूर्ण परमात्मा कविर्देव है जो चारों युगों में धरा पर आते है, पर अज्ञानतावश हम पहचान नहीं पाते हैं।
अधिक विस्तार से जानने के लिए के लिये सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा अनुवादित गहरी नजर गीता मेंपुस्तक का गहराई के साथ अध्ययन चिन्तन व मनन करें किसी शंका का निवारण कुतर्क के स्थान पर वितर्क कर, विभिन्न जिलों में खुले सन्त रामपाल जी महाराज के नामदान केन्द्रों पर जाकर करें या सन्त के अनुयायियों से मिलकर भी कर सकते है।