क्या आप अमरनाथ धाम Amarnath Dham Katha की वास्तविक कथा से परिचित है, अगर नहीं तो आज हम अपने इस लेख में आपको सत्य अमरनाथ धाम (Amarnath Dham Katha) की कथा के बारें में बताएंगे और साथ में ये भी बताएंगे की अमरनाथ धाम का अर्थ क्या होत है, क्योंकि गूगल पर बहुत सारे लेख मिलेगे जिनमे कथा के बारें मे बताया है, लेकिन सत्य जानकारी नहीं दी गई है। दोस्तों अमरनाथ धाम की रचना कैसे हुई, क्या (Amarnath Dham Katha) अमरनाथ धाम की असली कथा है? आइए जानते है।
क्वदन्तियों, श्रुतियों यानी सुना सुनाया ज्ञान जिसे लोक भाषा मे लोकवेद कहते है व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रिलोकी भगवान शिव द्वारा पार्वती जी को सुनाई गयी अमर होने की कथा को स्थान विशेष, कथावाचक विशेष के व्याख्यानों में अलग ढंग से कहा जाता है।
पर सच्चाई कुछ और है, उस सच्चाई को जानने के लिये अमरनाथ (Amarnath Dham Katha) गुफा की समस्त कहानियों को अपने सदग्रन्थों से मिलाया जाये तो कहानी कुछ और ही निकलकर स्वतःआ जाती है। पार्वती को त्रिलोकी भगवान शंकर द्वारा सुनाई गयी अमरत्व की कथा तो सच है पर हमारे तथाकथित कथावाचकों व लेखको द्वारा अपने अपने विचार जोड़ देने से इस अमरत्व कथा का स्वरूप पूर्ण रूपेण बदल सा गया है।
यह हम आप सभी जानते है कि आपसी संवाद में वक्ता द्वारा कहे गये किसी कहानी के शब्दों को आगे तक पहुंचाने से ही कोई ज्ञान फैलता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। और चलते भी रहना चाहिए लेकिन जब मूल ज्ञान विद्रूपता के स्वरुप तक पहुंच जायें और उसका समर्थन भी अपने शाश्त्रों को मिलाये बगैर शुरू हो जाये तो इससे बढ़ी विद्रूपता और कोई नही हो सकती।
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आओ सबसे पहले संक्षेप में जानते है लोकवेद यानि आधा सच और आधा झूठ के अनुसार सबसे ज्यादा प्रचलित अमरनाथ गुफा (Amarnath Dham Katha) का वास्तविक रहस्य क्या है। आगे चलकर शंकर जी द्वारा सुनाई गयी शाश्त्रो से प्रमाणित वास्तविक कथा का संक्षेप में वर्णन करेंगे। लेख विस्तार भय से सभी कहानियां लिखना संभव नहीं है।
कोरोना भय से पिछले दो वर्षों से बन्द पड़ी अमरनाथ धाम (Amarnath Dham Katha) यात्रा इस बार 30 जून से शुरू होकर भी श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक चलेगी। अमरनाथ धाम जम्मू कश्मीर के हिमालय में स्थित एक गुफा में स्थित एक स्थान है जहां पर प्रतिवर्ष प्राकृतिक रूप से वर्फ के लिंग का निर्माण होता है।
मान्यता है कि यहीं पर शिवाजी ने पार्वती को अमर ज्ञान सुनाया था। कबूतरों का वर्णन भी कथा में आता है। लोकवेद आधारित इस कथा का अधिकांश ज्ञान भ्रामक है, अपुष्ट है् व तथ्यों पर आधारित नहीं है।
त्रिलोकी भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती को समझाया करते थे कि भक्ति किया करो। भक्ति से ही सुख होता है। अर्जित भक्ति का सुख के रूप में उपभोग करने के पश्चात दुख आते है। संगत कर्म संस्कारों का दण्ड हमेशा ही बना रहता है, पर पार्वती के यह बात गले नहीं उतरा करती थी।
उसका कारण त्रिलोकी भगवान की पत्नी होने के कारण सभी अन्य देवी देवता पार्वती के आगे हाथ जोड़े खड़े रहते थे। इस बात का पार्वती को अहंकार था। सुख अपार था। इसलिये पार्वती के यह बात समझ में नहीं आया करती थी
एक दिन भगवान शिव के अन्यत्र गमन के पश्चात नारद जी का त्रिलोकी भगवान शंकर के घर पर आगमन हुआ। बातों ही बातों में नारद जी ने पार्वती से अमर होने वाला मन्त्र शिवजी से प्राप्त करने की बात पूछी। पार्वती के ना करने पर नारद ने पार्वती को बताया कि आपका यह 108 वां जन्म है। 107 बार आप जन्म व मर चुकी हो। प्रमाण में घर में टंगे 107 नरमुण्डों की माला की बात बतायी।
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पार्वती के नारद की बात गले नहीं उतरी। नारद की बात का विरोध करने लगी। तब नारद ने कहा माता अभी तक आपने शंकर को सिर्फ पति रूप में माना है। शिवजी को गुरू तो मानने की दूर की बात अबतक आपने शिवजी को भगवान तक नही माना।इसलिए शिवजी ने बहुत से रहस्य आपसे छिपा रखे है।
नारद ने समझाया कि अध्यात्म मार्ग में गुरू बनाये बिना मूल मन्त्र दिये ही नही जाते चाहे पारिवारिक सम्बन्ध बाप बेटे पत्नी पुत्र मित्र जैसे कितने घनिष्ठ क्यों ना हो। नारद बहुत सी बातों को समझाकर चले गये पर पार्वती के नारद की बात गले नहीं उतरी। इतना जरूर हुआ पार्वती के मन में शिवजी द्वारा कुछ ना कुछ छिपाने का संदेह पैदा हो गया।
जब भगवान शंकर घर पर आये तब पार्वती ने नारद की समझायी बातों को शंका के आधार पर ही सही पर मन में आधीनी भाव लाकर दण्डवत प्रणाम कर भगवान शिव से नारद जी के बताये गये तरीके से अपनी अनजाने में हुई गलतियों की मांफी मांगते हुये बराबरी का पत्नी भाव त्यागकर पूछा ।भगवन आपके पास एक अमोघ मात्र है जो आपने अपनी इस दासी से छिपा रखा है।
आधीनी भाव देखकर शिवजी को आश्चर्य हुआ कि इतनी अधिक विनम्रता एकदम कैसे आ गयी शिवजी के पूछने पर पार्वती ने बताया कि नारद जी आये थे। उन्होने ही सारा भेद बताया है।
तब शंकर ने सारा भेद बताते हुये रहस्य से पर्दा हटाकर बताया कि पार्वती यह सभी सिर तेरे ही हैं। तेरी मौत के बाद मैं बहुत तड़फता था। जब तू सती रूप में अपने पिता राजा दक्ष के यहां मौत को प्राप्त हुई तब मै तेरे अस्थि पिंजर को सीने से चिपकाकर 10000 वर्ष तक पागलों की तरह घूमता रहा। तेरे मरने का दुख बहुत होता था पर जब तक आधीनी भाव ना हो तब तक यह मन्त्र नही दिये जा सकते।
बिना आधीनी भाव के यह मन्त्र काम नहीं करते है। अब आपके अन्दर आये आधीनी भाव ने आपको मन्त्र प्राप्त करने का अधिकारी बना दिया है। पार्वती मैने अनेक जन्म में तुझे अमर मन्त्र देने की कोशिश की पर आधीन भाव ना होने के कारण असफल रहा आधीनी भाव ना होने पर मन्त्र देने वाले को दोष लगता है। तेरे मरने पर मुझे दुख होता था पर मै अध्यात्म की मर्यादा के तहत विवश था।
पार्वती अब मैं आपको यह मन्त्र दूँगा और अमर परमात्मा की कथा भी सुनाऊंगा। भले ही हम त्रिदेवों की उम्र बहुत लम्बी है पर सभी है जन्म मरण में। इन मन्त्रों की प्राप्ति के बाद जन्म मरण से बहुत लम्बे समय तक छुटकारा संभव हो सकेगा । इस कथा को सुनने के लिये एक निर्जन स्थान पर जाना होगा।
शिवजी पार्वती की दृढ़ जिज्ञासा व पूर्ण समर्पण भाव देखकर पार्वती को उस स्थान पर ले गये जो आज अमरनाथ धाम से प्रसिद्ध है। वहां पर कथा सुनाने के लिये निर्जन स्थान जो पशु पंछी रहित था ढूढ़कर सूखे वृक्ष की जगह इस बजह से बैठे ताकि कोई आस पास का पंछी मन्त्र को ना सुन सके। तीन बार जोर से ताली बजायी। उस ताली का नाद इतना भयंकर था कि आसपास के सभी पंछी उड़ गये।
आश्वस्त होने के बाद शिवजी अमर कथा को सुनाने लगे संयोग से उस वृक्ष पर कर्म संस्कार वश एक जीव तोते के अण्डे के रूप में जीर्ण शीर्ण अवस्था में था। उधर माता पार्वती को कथा सुनते- सुनते नींद आ गयी। दूसरी तरफ त्रिलोकी भगवान शंकर की ऊर्जा के प्रभाव से वह अण्डा स्वस्थ हो चुका था और माता पार्वती की जगह तोता मिलती जुलती आवाज में हुंकार की आवाज करने लगा था।
भगवान शंकर का ध्यान गया कि पार्वती की आवाज आने के स्थान पर यह किसकी आवाज आ रही है तब जाकर देखा कि यह तोते की आवाज है। भगवान शंकर कुपित होकर उस तोते को त्रिशूल लेकर मारने दौड़े तोता वहां से उड़कर व्यास की पत्नी के अंदर मुंह द्वारा शरीर में समा गया। बाद मे उसी तोते का जीव शुकदेव कहलाया।
पाठकों सोचना होगा कि अमर परमात्मा की कथा (Amarnath Dham Katha) इस प्रकार है। पहाडों पर गुफाओं मे विशेष परिस्थितियों में वर्फ के लिंग बनते व बिगड़ते रहते है। विदेशों में भीें बनते बिगड़ते है। कभी कभी सिद्धों की सिद्ध शक्तियों के प्रभाव से बहुत से चमत्कार अपने नियत समय पर होते रहते है। अमरता प्राप्त करने के अधिकारी गुरू द्वारा मन्त्र प्राप्त कर अमरलोक पाया जा सकता है अमर लोक को संत की भाषा में सतलोक तो गीता में परमधाम कहा गया है। प्राकृतिक कारणों से बने लिंग के दर्शन पूजन से चौरासी का चक्र नहीं मिटने वाला है।
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