आज हम जानेंगे कि गंगा मैया की उत्पत्ति कैसे हुई? गंगा नदी कैसे आई धरती पर? गंगा नदी का अवतार कैसे हुआ? साथ में इसके रहस्य को जानेंगे की गंगा नदी जल खराब क्यों नहीं होता।
भारत की लोकप्रिय गंगा नदी को हर कोई जानता ही होगा। आज हम उसी गंगा नदी के बारे में कुछ खास बातें जानेगे जो आप नही जानते होंगे। गंगाजल खराब क्यों नहीं होता कैसे हुआ गंगा नदी का उद्गम, क्या है इसका इतिहास, आखिर क्यों गंगाजल खराब नहीं होता?
गंगा नदी एक ऐसी नदी है जिसका पानी विश्व की सभी अन्य नदी से अलग है। गंगा एक ऐसी नदी है जो केवल पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि जनमानस की अभिव्यक्ति में भी लोकोक्तियों एवं मुहावरों के रूप में बहती है। अपनी इसी लोकप्रियता और अद्वितीय रूप में बहने के कारण यह लगातार जन्म मृत्यु के उपरांत किये जाने वाले कर्मकांड का हिस्सा बनी।
चित्रों एवं मूर्तियों में हमें गंगा नदी शिव जी की जटाओं से निकली हुई दिखाई जाती है। जितने भी देवी देवता हैं उनके अपने अपने लोक होते हैं। जैसे ब्रह्मा जी का अपना लोक है, विष्णु जी का अपना लोक है और शिवजी का अपना लोक है। प्रत्येक लोक में सरोवर होते है उसी प्रकार शिवलोक में भी सरोवर है नदी गंगा के रूप में। किन्तु यह शिवलोक में ही क्यों है? अन्य किसी लोक में क्यो नहीं है? वास्तव में गंगा शिवलोक की भी नहीं है। इसे अमर लोक यानी सतलोक से शिव लोक में भेजा गया था।
विचार कीजिए आखिर क्यों गंगा का जल इस पूरे विश्व का सबसे निर्मल और स्वच्छ जल है? यह कैसे सम्भव है? कौन सा है अमर लोक जहाँ से गंगा भेजी गई और जिसे शिवलोक से पृथ्वी पर भेजा गया।
हरिद्वार, इलाहबाद और वाराणसी जैसे हिंदुओं के कई पवित्र स्थान गंगा नदी के तट पर ही स्थित हैं। थाईलैंड के लॉय क्राथोंग त्यौहार के दौरान सौभाग्य प्राप्ति तथा पापों को धोने के लिए बुद्ध तथा देवी गंगा के सम्मान में नावों में कैंडिल जलाकर उन्हें पानी में छोड़ा जाता है।
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गंगा नदी एक स्वच्छ और पवित्र जल है जिसके समान इस पूरी पृथ्वी पर कोई अन्य जलस्त्रोत नहीं है। गंगा पृथ्वी पर कैसे आई?
वास्तव में गंगा को सतलोक से जो कि वह लोक है जो सर्वोत्तम और अविनाशी है से वहाँ के मानसरोवर से मात्र एक मुट्ठी ब्रह्मलोक में भेजा गया। ब्रह्मलोक यानी ब्रह्मा विष्णु महेश के पिताश्री क्षर ब्रह्म या ज्योति निरजंन के लोक और वहाँ से फिर वह विष्णुलोक में आई और फिर आई शिवलोक के जटा कुंडली नामक स्थान पर। शिवलोक में आने के बाद पृथ्वी पर तपस्वी भगीरथ के द्वारा तप के माध्यम से लाई गई।
गंगा पृथ्वी पर तब भी आती यदि उसे कोई तपस्वी लाने के लिए तप नहीं करता क्योंकि परम् पिता परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा वह भेजी ही इस उद्देश्य से गई थी कि पृथ्वी पर हम प्रमाण पा सकें कि वास्तव में अविनाशी जो कभी नष्ट न हो उस स्थान का जल ऐसा है। सतलोक वह स्थान है जहाँ से गंगा मात्र एक मुट्ठी आई वाष्प रूप में वहाँ कोई वस्तु खराब नहीं होती और न ही वहां के निवासी मरते अथवा वृद्ध होते हैं।
आज हम सभी जितने भी जीव हैं जानवरों एवं इंसानों समेत वे सभी सतलोक के निवासी थे। अविनाशी लोक की हम सभी आत्माएं हैं जहाँ सुख ही सुख हैं दुख का कोई नामोनिशान ही नहीं है। ऐसे स्थान से हम ज्योति निरजंन की तपस्या से मुग्ध होकर अपने अविनाशी लोक को छोड़कर उसके 21 ब्रह्मांडो में चले आए।
सतलोक में कर्म का सिद्धान्त नहीं है किंतु यहाँ आकर जो अनजाने में किए कर्म हैं उनका भी दण्ड भोगते हुए हम कभी चींटी, कभी सुअर तो कभी कुत्ते आदि की योनियों में कष्ट उठाते हैं। गंगा नदी सतलोक से इस मृत लोक में आई है और सतलोक की सभी वस्तुए अविनाशी है इसलिए गंगा का जल कभी खराब नहीं होता।
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गंगा नदी को भेजने का उद्देश्य यही था कि हमारे लिए प्रमाण हो कि अविनाशी अमर लोक कोई अन्य है जहाँ वास्तव में कुछ भी नष्ट नहीं होता न ही कलुषित होता है। वापस उसी और चलना श्रेयस्कर है जहाँ से हम आये थे स्वेच्छा से अब लौटेंगे उसी सतलोक की ओर। जिसने ज्ञान समझ लिया वह सिर पर पांव रखकर निजस्थान की ओर दौड़ेगा और जिसे अब भी तत्वज्ञान नहीं समझ आया वह पुनः चौरासी लाख योनियों में धक्के खाएगा।
जब महाराज प्रतीप को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसका नाम शांतनु रखा और इसी शांतनु से गंगा का विवाह हुआ। गंगा से उन्हें 8 पुत्र मिले जिसमें से 7 को गंगा नदी में बहा दिया गया और 8वें पुत्र को पाला-पोसा। उनके 8वें पुत्र का नाम देवव्रत था। यह देवव्रत ही आगे चलकर भीष्म कहलाया।
सतलोक परम् अक्षर ब्रह्म कविर्देव का स्थान है। जहां हम सभी आत्माएँ रहते थे। वेदों के अनुसार प्रत्येक युग मे पूर्ण परमेश्वर स्वयं आकर तत्वदर्शी सन्त की भूमिका निभाते हैं और तत्वज्ञान समझाकर मूल मंत्र बताकर हमे निजस्थान लेकर जाते हैं। सतलोक का मालिक अचल, अभंगी, सर्वोच्च, सर्वोत्तम, सर्वहितैषी, दयावान, दाता, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब हैं, जिनके ऊपर किसी की सत्ता नहीं है किंतु उनकी सत्ता सब पर है।
उस अविनाशी लोक में कोई पदार्थ न तो नष्ट होता है और ना ही कोई दुख आदि हैं। वहाँ रहने वाली आत्माएं हंस कही जाती हैं तथा वे सदा युवा रहती हैं। सतलोक में न रोग है, न शोक है, न कष्ट है, न अवसाद है, न चिंताएँ हैं, न दुख है, न भय है, न बुढ़ापा है और न ही मृत्यु होती है। सर्व मानव समाज से प्रार्थना है एक बार तत्वज्ञान समझें और फिर से अपने निजलोक की ओर जाने की तैयारी करें। विचार करें जिस सतलोक के मानसरोवर की मात्र एक मुट्ठी जल गंगा है, वह लोक कितना अद्वितीय होगा।
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारंबार।
तरूवर पत्ता टुट गिरे,बहुर न लगता डार
जिस प्रकार टूटा पत्ता पुनः डाल पर नहीं लगता है उसी प्रकार मनुष्य जन्म का जो समय गया तो वह कभी लौटेगा नहीं। मनुष्य का जन्म मिलना कठिन है और मिलने पर मोक्षप्राप्ति कठिन है। मोक्ष केवल तत्वदर्शी सन्त की शरण में होता है और यदि जन्म में तत्वदर्शी सन्त मिल भी जाए तो तत्वज्ञान समझना दुष्कर है। तत्वदर्शी सन्त वह ज्ञान और मूल मंत्र देता है जिसकी आस में करोड़ों ऋषि मुनि तपस्या करते रहे किन्तु ब्रह्मलोक तक की ही साधनाएँ कर सके। किन्तु आज हमारे समक्ष अवसर है।
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