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Satlok (सतलोक): स्वर्ग और नरक से भिन्न एक सर्वोच्च स्थान है, हमारा वास्तविक घर सतलोक

Updated 28 dec | 1:00 pm

Satlok: आज हम आपको प्रमाण सहित सतलोक (Satlok) के बारे में बताएंगे जिसके बारे में शायद ही आपने सुना और पढ़ा होगा क्योंकि हमारे धर्म गुरुओं ने हमें मूर्ख बना कर रखा हुआ था। हमें अक्षर ज्ञान तो है परंतु अध्यात्म ज्ञान नहीं होने दिया गया।

एक काल (समय) जब आवै भाई। सबै सृष्टि लोक सिधाई।।

अर्थात एक काल यानि जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच बीतेगा। वह काल यानि समय जब आवैगा, तब सब सृष्टि सतलोक जाएगी।

अभी तक हमने केवल यही सुना था कि मृत्यु पश्चात व्यक्ति अपने कर्म आधार पर स्वर्ग और नरक में जाता है । पुण्य स्वर्ग में खर्च करने के बाद नरक में और फिर उसके बाद चौरासी लाख योनियों में जन्मता और मरता है। चौरासी लाख योनियां भोगने के बाद फिर मनुष्य जन्म का कभी सुअवसर आता है।

Satlok: दुर्भाग्य हमारा हमें आज तक कोई समझदार गुरू नहीं मिला था जिसने गीता, वेद, पुराण, शास्त्र आदि अन्य धर्म ग्रंथ खोल कर समझाए हों। परंतु परमात्मा की असीम दया से हमारे अज्ञान को दूर करने परमात्मा स्वयं अपने निज स्थान सतलोक से चलकर हमें सतज्ञान देने पृथ्वी पर आए हैं। परमात्मा पृथ्वी पर आए हुए हैं, तत्त्वदर्शी संत की भूमिका में तत्वज्ञान जगत को बताने आए हैं जिसे जानकर मनुष्य सतभक्ति करेगा और स्वर्ग – नरक में जाने से बच जाएगा। मोक्ष प्राप्त करके सीधा सतलोक जाएगा।

यहां हम आपको बताएंगे कि स्वर्ग और नरक से भिन्न एक सर्वोच्च स्थान है जिसे सतलोक कहते हैं।

Satlok: सतलोक की जानकारी


Satlok : पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द (वचन) से की।

पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु) है। इसी का नाम अकालमूर्ति – शब्द स्वरूपी राम – पूर्ण ब्रह्म – परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।

Satlok: स्वर्ग क्या है?


उदाहरण के लिए स्वर्ग को एक होटल (रेस्टोरेंट) की तरह समझिए। जैसे कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरों में ठण्डे स्थानों पर जाता है। वहाँ किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया तथा खाने का खर्चा अदा करना होता है। कुछ दिनों में दस हज़ार रूपये खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में लौटना पड़ता है। फिर दस ग्यारह महीने मजदूरी मेहनत करता है पैसा इकट्ठा करता है। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो गर्मियों की छुट्टियां भी घर पर बितानी पड़ेंगी

Satlok: नरक क्या है?

Satlok: नरक में जाने वाली आत्मा को यमदूतों द्वारा भरपूर यातनाएं दी जाती हैं। उदाहरण के तौर पर जो व्यक्ति मनुष्य जन्म में ‌शराब का एक घूंट भी पीता है , वहां नरक में उसे मूत्र पिलाया जाता है। हर पाप कर्म के‌ दंड की जानकारी गरूड़ पुराण में लिखी हुई है। इसे व्यक्ति को जीते जी पढ़ना चाहिए। स्वर्ग और नरक की कामना तो व्यक्ति को ख्वाब में भी नहीं करनी चाहिए।

स्वर्ग को पुण्य खर्च करने वाला होटल जानो और नरक को यात्नाएं सहन करने वाला कुआं। इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। फिर अपनी पुण्य कमाई खर्च करके वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट पाप कर्म के आधार पर भोगना पड़ता है।

कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।

एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं :-

(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।

Satlok: सत्यलोक (सतलोक) की रचना


Satlok: सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा।

Satlok: अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की।

Satlok: अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। ( अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा)

Satlok Kese Jayenge: कैसा है सतलोक?

Satlok : सतलोक जहाँ जाने के बाद कभी जन्म – मृत्यु नहीं होती। सतलोक में सूर्य और चंद्रमा नहीं हैं और ना ही वो लोक नाशवान है। वहाँ की मिट्टी बिल्कुल सफेद और चमकदार है। वहाँ का जल और अन्य खाद्य वस्तुएँ कभी खराब नहीं होती। वहाँ फलों से लदे हुए पेड़ हैं, जिनका फल इतना मीठा है कि पृथ्वी लोक में तो उसका उदाहरण मिलना मुश्किल है।

सतलोक में दूधों की नदियां बहती हैं और वहाँ पहाड़ों पर हीरे मोती जड़े हुए हैं। वहाँ की हंस आत्माओं के पास बड़े- बड़े घर और अपने विमान हैं।

क्या सत्यलोक में स्त्री-पुरूष प्रेम से रहते हैं?

Satlok : सतलोक में पृथ्वी लोक की तरह हाहाकार नहीं है, वहाँ के स्त्री- पुरुष बहुत प्रेम से रहते हैं। वहाँ के पुरुष अपनी पत्नी के साथ बहुत प्रेम से रहते हैं और किसी और की स्त्री को दोष दृष्टि से नहीँ देखते। वहाँ के प्राणी कभी किसी को अभद्र भाषा नहीं बोलते तथा अभद्र व्यवहार नहीं करते। उनके शरीर की शोभा 16 सूर्यों के प्रकाश जितनी है।

सतलोक में रहने वालों के शरीर कैसे हैं?


Satlok: सतलोक में सब व्यक्तियों (स्त्री-पुरूष) का अविनाशी शरीर है। मानसरोवर पर मनुष्य के शरीर की शोभा तथा स्त्रियों की शोभा 4 सूर्यों जितनी है। परंतु अमर लोक में प्रत्येक स्त्री, पुरूष के शरीर की शोभा 16 सूर्यों के प्रकाश जितनी है। सतपुरूष का भी अविनाशी शरीर है।

कौन रहता है सतलोक में?

Satlok: सतलोक में रहने वाले मनुष्यों को हंस कहा जाता है, उनके शरीर का प्रकाश 16 सूर्यों जितना है। वहां पर नर नारी की ऐसी ही सृष्टि है। वहाँ किसी भी चीज़ का अभाव नहीं है। वहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा 3 गुण जीव को दुखी नहीं करते। सतलोक में किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं है अर्थात उसे सुखमय स्थान भी कहते हैं। वहां पर हर एक जीव का अपना महल है तथा अपना विमान है। वह भी बहुत सुंदर तथा हीरे, पन्नों से जड़े हुए हैं। वहाँ श्वासों से शरीर नही चलता। वहाँ जीव अमर है।

कैसा होता है सतलोक के हंसों का स्वभाव?

Satlok: केवल सतभक्ति करके ही सतलोक जाएंगे। सतलोक में सतनाम (मंत्र) के सहारे सब हंस गए हैं। सतलोक में अमृत फल का भोजन खाते हैं। काल लोक में युगों से भूखे प्राणियों की भूख तृप्त सतलोक में होती है। सब आत्माऐं स्त्री-पुरूष सुधा यानि अमृत पीते हैं। जन्म-जन्म की प्यास समाप्त हो जाती है। कामिनी रूप यानी जवान स्त्रियां हैं। वे अपने-अपने पतियों के लिए प्राणों से भी प्यारी हैं। सत्यलोक के निवासी पुरूष सब स्त्रियों को प्रेम भाव से निहारते (देखते) हैं। दोष दृष्टि से नहीं देखते। कोई भी व्यक्ति अनहित यानि कटु वचन व्यंग्यात्मक वचन या अभद्र भाषा नहीं बोलते।

सतलोक के स्वामी कौन है?

कबीर परमेश्वर विशेषकर सतलोक (सत्यलोक) में बैठकर सब नीचे व ऊपर के लोकों को संभालते हैं। इसलिए सतलोक का विशेष महत्व हमारे लिए है। उसमें सतपुरूष पद से जाना जाता है।

पूरी दुनिया में सच्चा गुरु कौन है?

उत्तर:- कबीर परमात्मा ही पूर्ण संत, पूर्ण गुरु हैं। वर्तमान मे सच्चा गुरु संत रामपाल जी महाराज है।

सब प्रेम भाव से अपनी-अपनी प्रिय रानी यानि पत्नी के साथ मधुर भाव से रहते हैं। उन स्त्रियों की शोभा मन को बहुत लुभाने वाली है। सब स्त्रियां (कामिनी) हंस रूप यानि पवित्र आत्माऐं हैं। उनका रंग चढ़ा रहता है यानि सदा यौवन बना रहता है। वहाँ स्त्री वृद्ध नहीं होती, न पुरूष वृद्ध होते हैं। सदा जवान रहते हैं।

सतलोक के बारे में प्रमाण?

  • सतलोक का वर्णन कबीर सागर में 25वां अध्याय ‘‘अमर मूल‘‘ पृष्ठ 191 पर है। यहाँ पर सतलोक के बारे में विस्तार से वर्णन है।
  • गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञानदाता कहता है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाता है।
  • नानक साहेब को भी परमेश्वर कबीर जी सतलोक लेकर गए थे और उनको तत्वज्ञान बताया था जिसे देखने के बाद उन्होंने कहा था:-

फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।

खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।

मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।

नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।

प्रमाण:- गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29

पृष्ठ 731 पर महला 1 में कहा है कि:-

अंधुला नीच जाति परदेशी मेरा खिन आवै तिल जावै।
ताकी संगत नानक रहंदा किउ कर मूड़ा पावै।।(4/2/9)

  • जन्म साखी भाई बाले वाली पष्ठ 280.281 पर श्री नानक देव जी ने बताया है कि मैंने जब बेई नदी में डुबकी लगाई थी। उसी समय बाबा जिन्दा के वेश में गुरु कबीर जी मिले थे। मैं तीन दिन उन्हीं के साथ रहा था। वह बाबा जिन्दा परमेश्वर के समान शक्तिशाली हैं।
  • सतलोक का प्रमाण आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में भी है, जब उन्हे परमेश्वर कबीर जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे और सतलोक लेकर गए थे।उन्होंने अपनी वाणी में कहा है:-

आदि रमैंणी अदली सारा। जा दिन होते धुंधुंकारा।

सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा। हम होते तखत कबीर खवासा ।।

सतलोक कैसे जा सकते हैं?

पूर्ण संत की शरण ग्रहण करके उसकी दी हुई भक्ति से ही सतलोक जाया जा सकता है।

  • श्रीमद भगवत गीता अध्याय नं 15 के श्लोक न. 1 से 4 तथा श्लोक न. 16 व 17 में प्रमाण है जो संत उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी हिस्सों को समझा देगा, वही पूर्ण संत है।
  • कबीर साहेब ने धर्मदास को बताया था कि मेरा संत सतभक्ति बतायेगा लेकिन सभी संत व महंत उसके साथ झगड़ा करेंगे। यही सच्चे संत की पहचान होगी।

जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सब राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।

  • यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25 व 26 में लिखा है कि वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
  • पूर्ण संत का वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है। पूर्ण संत तीन स्थिति में सार नाम प्रदान करता है तथा चौथी स्थिति में सार शब्द प्रदान करता है। यह उस सच्चे संत की पहचान है।
  • श्रीमद भगवत गीता जी में “ओम,तत्, सत्” का प्रमाण है। श्रीमद भगवत गीता में गीता ज्ञान दाता कहता है कि उस परमात्मा को हासिल करने का तीन मंत्रो का प्रमाण है। गीता ज्ञान दाता कहता है कि तू सच्चे संत की तलाश करके उससे इन मंत्रों को हासिल कर।
  • श्री गुरु नानक जी ने कहा है पूरा सतगुरु वही है जो दो अक्षर के जाप के बारे में जानता है।

पूरा सतगुरु सोए कहावै जो , दोय अखर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर को जावै।।

  • सतगुरु गरीबदास जी ने भी अपनी वाणी में कहा कि वो सच्चा संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा। प्रमाण:- यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26.
  • पांच हज़ार और पांच सौ जब कलियुग बीत जाय, महापुरुष फरमान तब जग तारण को आये।।

यह भी पढें: कामाख्या मंदिर का गुप्त रहस्य

सतलोक में परमेश्वर का‌ शरीर कैसा है?

Satlok: सतलोक क्या है आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि सतलोक क्या है कैसा है हम कैसे जा सकते हैं इसका कहां प्रमाण है इसका कहां पर अस्तित्व है।

दोस्तों एक ऐसा लोक जहां पर कभी जन्म मृत्यु नहीं होती जहां आत्मा और जो हमें मिला शरीर वह अजर अमर है वहां कभी बुढ़ापा नहीं आता जिसको गीता जी में सास्वत स्थान कहां गया है। जी हां दोस्तों सतलोक एक ऐसी पृथ्वी है जहां पर इस पृथ्वी लोक यानी मृत मंडल के जैसी या फिर यूं कहें की सतलोक की रचना की कॉपी यहां के राजा ज्योति निरंजन ने करके पृथ्वीलोक की रचना करी है।

आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही लोग की जहां पर हमारी कभी मृत्यु नहीं होती जहां कोई दुख नहीं है जहां किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है वहां हमें सभी सुविधाएं हैं जैसी एक कर राजा के बेटे को सुविधाएं प्राप्त होती है वैसी ही हमें सभी सुविधाएं वहां हमारे परम पिता परमेश्वर कबीर साहिब जी ने दे रखी है।

Satlok Kese Jayenge: सतलोक में किस प्रकार की सृष्टि है?

Satlok : सतलोक में आदरणीय परम संत गरीबदास जी महाराज जी ने बताया है की वहां हमें कोई कार्य नहीं करना होता परमात्मा की वाणी है
अजब नगर में ले गए हमको सतगुरु आन जिले के बिंब अगाध गति सुते चादर तान।

Satlok: सतलोक में हमें किसी भी प्रकार का दुख नहीं है यहां पृथ्वी लोक में हमें हर प्रकार के दुख भोगने होते हैं कभी किसी की मृत्यु हो जाती है कभी किसी का एक्सीडेंट हो जाता है कभी किसी के हाथ पैर टूट जाते हैं लेकिन सतलोक में ऐसा कोई दुख नहीं है वहां पर हमारा अजर अमर शरीर है हमारे शरीर की शोभा सात सूर्य की रोशनी जितनी बताई गई।

यह भी पढें: गंगा मैया (नदी ) की उत्पत्ति कैसे हुई? जानिए इसका इतिहास।

Satlok : सतलोक हमारे महल बने हुए हैं जिनके आगे अलग से पाक और हमारे विमान खड़े हैं दूधों की नदियां बहती है वहां पर किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है हमारे कल्पना करने मात्र की देर होती है कि वह वस्तु हमारे पास होती है।

दोस्तों कल्पवृक्ष के बारे में आपने सुना होगा वह सतलोक के अंदर विद्यमान है हम एक पल में इस लोक में और दूसरे पल में कहीं भी पूरे सत्रों की सैर कर सकते हैं।

Nity

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