Ramayan: भगवान राम से जुड़ी कुछ खास बातें जानेंगे। भगवान राम से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जानेंगे जो हमने रामायण में नहीं देखी है यह जिन बातों पर हमने ध्यान नहीं दिया जो सवाल हम सभी के मन में आते हैं।
Ramayan: जब हनुमान जी सीता जी से उनकी निशानी लेकर राम जी के पास जा रहे थे, तब रास्ते में कौनसी घटना घटित हुई?
Ramayan: लंका से लौट रहे हनुमान जी आकाश मार्ग से उड़कर समुद्र पार करके एक पहाड़ी पर उतरे। सुबह का समय था। पहाड़ पर जलाशय पवित्रा जल से भरा था। पास ही बाग था जिसमें फलदार वृक्ष थे। हनुमान जी को भूख लगी थी। स्नान करने का विचार किया। कंगन को एक पत्थर पर रख दिया। स्नान करते समय भी हनुमान की एक आँख कंगन पर लगी थी। लंगूर बंदर आया। उसने कंगन उठाया और चल पड़ा। हनुमान जी को चिंता बनी कि कहीं बंदर इस कंगन को समुद्र में न फैंक दे, मेर परिश्रम पर पानी न फिर जाए।
अब लंका में जाने का रास्ता भी बंद हो गया है। अजीब परेशानी में हनुमान बंदर के पीछे-पीछे चला। देखते-देखते बंदर ने वह कंगन एक ऋषि की कुटिया के बाहर रखे एक घड़े में डाल दिया और आगे दौड़ गया। हनुमान जी ने राहत की श्वांस ली। कलश में झांककर कंगन निकालना चाहा तो देखा घड़े में एक जैसे अनेकों कंगन थे। हनुमान जी को फिर समस्या हुई। कंगन उठा-उठाकर देखे, कोई अंतर नहीं पाया। अपना कंगन कौन-सा है? कहीं मैं गलत कंगन ले जाऊँ और श्री राम कहे, यह कंगन सीता का नहीं है, मेरा प्रयत्न व्यर्थ हो जाएगा।
सामने एक ऋषि हनुमान जी की परेशानी को देखकर मुस्करा रहा था। कुटिया के बाहर बैठा था। ऋषि जी बोले, आओ पवन पुत्रा! किस समस्या में हो? हनुमान जी ने कहा कि ऋषि जी! श्री रामचन्द्र जी की पत्नी को लंका का राजा रावण अपहरण करके ले गया है। मैं पता करके आया हूँ। ऋषि जी ने कहा कि कौन-से नम्बर वाले रामचन्द्र की बात कर रहे हो? हनुमान जी को आश्चर्य हुआ कि ऋषि अपने होश-हवास में है या भाँग पी रखी है?
हनुमान जी ने पूछा, हे ऋषि जी! क्या राम कई हैं? ऋषि जी ने कहा, हाँ, कई हो चुके हैं और आगे भी जन्मते-मरते रहेंगे। हनुमान जी को ऋषि का व्यवहार उचित नहीं लगा, परंतु ऋषि जी से विवाद करना भी हित में नहीं जाना। ऋषि जी ने पूछा, आप फल खाओ। मैं खाना बनाता हूँ, भोजन खाओ। थके हो, विश्राम करो। हनुमान जी ने कहा, ऋषि जी! मेरी तो चैन-अमन ही समाप्त हो गई है। मेरे को सीता माता ने कंगन दिया था। उस कंगन के बिना श्री रामचन्द्र जी को विश्वास नहीं होना कि सीता की खोज हो चुकी है।
उस कंगन को पत्थर पर रखकर मैं स्नान कर रहा था। बंदर ने उठाकर घड़े में डाल दिया। मेरी पहचान में नहीं आ रहा कि वास्तविक कंगन कौन-सा है। मेरे को तो सब एक जैसे लग रहे हैं। ऋषि रूप में बैठे परमेश्वर कबीर जी ने कहा, हे पवन के लाडले! आप कोई एक कंगन उठा ले जाओ, कोई अंतर नहीं है और कहा कि जितने कंगन इसमें पड़े हैं। इतनी बार श्री राम पुत्र दशरथ को बनवास तथा सीता हरण और हनुमान द्वारा खोज हो चुकी है। हनुमान जी ने कहा, ऋषि जी! यह बताओ, आपकी बात मानता हूँ।
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पूछता हूँ कि प्रत्येक बार सीता हरण, हनुमान का खोज करके कंगन लाना और बंदर द्वारा घड़े में डालना होता है तो कंगन तो यहाँ रह गया, हनुमान लेकर क्या जाता है? ऋषि मुनीन्द्र जी ने कहा कि मैंने इस घड़े को आशीर्वाद दे रखा है कि जो वस्तु इसमें गिरे, वह दो एक समान हो जाऐं। यह कहकर ऋषि जी ने एक मिट्टी का कटोरा घड़े में डाला तो एक और कटोरा वैसा ही बन गया। ऋषि मुनीन्द्र जी ने कहा, हे हनुमान! आप एक कंगन ले जाओ, कोई परेशानी नहीं होगी। हनुमान जी के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। उस घड़े से एक कंगन निकालकर उड़ चले।
Ramayan: श्री राम की सहायता के लिए सेना किसने भेजी थी?
Ramayan: श्री राम की सहायता के लिए सुग्रीव ने अपनी वानर सेना भेजी थी। रामायण में एक प्रकरण आता है जब भगवान राम ने राजा बाली, जो इंद्र के पुत्र और अंगद के पिता थे उनको धोखा दिया था। एक पेड़ की ओट लेकर उन पर छिपकर वार किया और बाली को मार डाला क्योंकि बाली में अलौकिक शक्ति थी, अगर कोई एकल-युद्ध में उनके साथ युद्ध करता है तो सामने वाले व्यक्ति की शक्ति का आधा हिस्सा बाली में प्रवेश कर जाता था। जबकि बाली और भगवान राम दुश्मन नहीं थे। भगवान राम ने अपने स्वार्थ के कारण बाली को धोखा दिया क्योंकि बाली के भाई सुग्रीव ने अपनी पूरी वानर सेना के साथ सीता जी की खोज और वापसी में श्री राम की मदद करने का वचन दिया था।
सीता की खोज करते हुए राम किष्किंधा जाकर सुग्रीव से मित्रता कर लेते हैं. सुग्रीव उन्हें भरोसा दिलाता है कि वह सीता का पता लगाने में उनकी मदद करेगा. साथ ही राम सुग्रीव को वचन देते हैं कि वह उसके बड़े भाई बाली का वध कर उसकी सहायता करेंगे. वही बाली, जिसने सुग्रीव को अपने राज्य से बाहर कर दिया था और उसकी पत्नी रूमा पर भी अधिकार जमा लिया था. इसके बाद बाली-सुग्रीव के बीच द्वंद्व युद्ध के दौरान राम छिपकर बाली को बाण मारते हैं. इस तरह बाली का वध होता है। जिसके बाद सुग्रीव अपनी सम्पूर्ण वानर सेना सीता माता की खोज करने के लिए राम जी के पास भेज देते हैं।
Ramayan: नल तथा नील कौन थे तथा इनके पास कौनसी विशेष शक्ति थी?
Ramayan: त्रेता युग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील दोनों आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीत थे। दोनो ने ही सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर के थक चुके थे। सर्व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु का इंतजार कर रहे थे।
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एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्णपरमात्मा का सतसंग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संगके उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीरसाहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्तर हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए।
इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिरकर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिलगया जिसकी तलाश थी तथा उससे प्रभावित होकर उनसे नाम (दीक्षा) ले लिया तथा मुनिन्द्र साहेबजी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले संतों का सत्संग पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे हुआ करता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभुप्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत थी। सेवा बहुत किया करते थे। सत्संग में रोगी, वद्ध व विकलांग भक्तजन भी आते थे दोनो भाई उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते थे।
Ramayan: उनके लोटे और गिलास भी मांज देते थे। परंतु दोनो दिमाग से भोले थे। कपड़े धोते धोते, सत्संग में जो प्रभुकी कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते और दोनों प्रभु चर्चा में इतने मस्त हो जाते थे की वस्तुएँ दरिया के जल में डूब जाती और उन्हे पता नहीं चलता था। किसी की चार वस्तु लेकर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजनकहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो । ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें ? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो । हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। फिर नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं करेंगे । परन्तु फिर वही काम करते। फिर प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ दरिया जल में डूब जाती।
Ramayan: भक्तजनों ने ऋषि मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृपया नल तथा नील को समझाओ। ये तो हमारी आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। ये नदी किनारे सत्संग में सुनी भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार तो उन्हें समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने कहा बेटा नल तथा नील तुम खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डुबेगी। मुनिन्द्र साहेब ने उनको यह आशीर्वाद दे दिया।
Ramayan: समुद्र पर पुल किसके आशीर्वाद से बना था?
Ramayan: रामायण में वर्णित अधूरे ज्ञान के आधार पर ये माना जाता है कि रामजी का नाम लिखने की वजह से पत्थर पानी पर तैरने लगे तथा पुल आसानी से बन गया। जबकि इसमें तनिक भी सच्चाई नहीं है। हनुमान एक भक्त आत्मा थे। वह रामचंद्र जी द्वारा एक शांति दूत के रूप में लंका में अभिमानी शासक रावण को आत्मसमर्पण करने और सीता को राम जी को वापस लौटाने के लिए भेजे गए थे। लेकिन अहंकारी रावण ने उनकी बात को नहीं स्वीकारा और सीता को वापस करने से मना कर दिया। बाद में फिर युद्ध की यलगार हुई परन्तु अब विशाल महासागर लंका तक पहुंचने में बाधक बन गया। रामचंद्र जी लगातार तीन दिनों तक घुटनों पानी तक महासागर में खड़े रहे और समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध किया, लेकिन सागर ने रास्ता नहीं दिया। इससे हताश होकर श्री राम ने अग्नि बाण को उठाकर पूरे समुद्र को जला देने का प्रण लिया।
तब, सागर ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और हाथ जोड़कर श्री राम के समक्ष खड़े हो गए और क्षमा मांगी और श्री राम से कहा कि आपकी वानर सेना में जो दो भाई नल और नील हैं उनको अपने गुरु जी ऋषि मुनिंदर (सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर जी यानी आदि राम) की कृपा से शक्ति प्राप्त है। यदि उनके हाथों से कोई भी वस्तु जल में डाली जाएगी तो वह डूबेगी नहीं बल्कि तैर जाएगी लेकिन उन्होंने इस शक्ति को गर्व (अभिमान) हो जाने के कारण खो दिया है। अब ऋषि मुनिंदर जी ही श्री राम की मदद कर सकते हैं।
सर्वशक्तिमान कबीर जी सूक्ष्म वेद में बताते हैं,
साधु दर्शन राम का, मुख पर बसे सुहाग।
दर्शन उनही को होत हैं, जिनके पूर्ण भाग।।
Ramayan: श्री राम उर्फ विष्णु भी आदि राम के बच्चे हैं। उन्हें इस विषम परिस्थिति में भगवान कबीर साहेब के आशीर्वाद की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने आदि राम को याद किया। परम अक्षर पुरुष कविर्देव सेतुबंध पर ऋषि मुनिंदर के रूप में प्रकट हुए और ब्रह्म-काल को दिए गए अपने वचन के अनुसार भगवान कबीर साहेब ने श्री राम की सेना के लिए रामसेतु का निर्माण किया।
ऋषि मुनिन्दर उर्फ आदि राम ने पर्वत के चारों ओर एक रेखा को चिन्हित किया और अपनी सर्वोच्च शक्ति से उस रेखा के अंदर के पत्थरों को लकड़ियों की भाँति हल्का कर दिया, जो पुल का निर्माण करते समय डूबे नहीं। इस प्रकार, रामसेतु का निर्माण आदि राम की कृपा से हुआ था। इससे पूर्व श्री राम पुल का निर्माण नहीं कर सके। यहां तक कि नल और नील भी असफल हो गए थे। चूंकि नल और नील वास्तुकार थे, इसलिए उन्होंने उन हल्के पत्थरों को तराशा और उन्हें एक-दूसरे के अनुकूल बनाकर जोड़ा और पूरी वानर सेना ने सेतु निर्माण के कार्य में अपना भरपूर योगदान दिया। पहचान के लिए, हनुमान जी ने उन सभी हल्के पत्थरों पर राम-राम लिख दिया और अब तक भोले भक्त यह मानते रहे कि रामसेतु का निर्माण श्री राम की कृपा से हुआ था। इस प्रकार अज्ञानतावश श्रद्धालु श्री राम को एक सर्व-शक्तिशाली दिव्य पुरुष मानते रहे।
Ramayan: राम और रावण के मध्य कितने वर्षों तक युद्ध चला था ?
Ramayan: दशरथ पुत्र राम तो एक निमित मात्र थे, वह तो रावण के साथ युद्ध में हार मान चुके थे। रामचरितमानस में इसका उल्लेख है कि श्रीराम जितनी बार भी अपने बाण से रावण का सिर काट देते थे उस जगह पुन: ही दूसरा सिर उभर आता था। समुद्र पार करने के पश्चात 18 दिन तक युद्ध हुआ। रावण इतना मायावी था कि उसे मारना कोई आसान कार्य नहीं था और श्री राम भी हार मानने लगे थे तब विभीषण ने बताया कि इसकी नाभि में निशाना लगाओ, जहां अमृत है। परन्तु उसको भी श्री राम निशाना नहीं लगा पा रहे थे और अत्यंत दुखी होकर उन्होंने भी आदि राम को याद किया तो स्वयं परमात्मा ने सूक्ष्म रूप में आकर रावण की नाभि में तीर लगाया था।
रावण को मारने में राम जी की गुप्त रूप से मदद किसने की थी?
Ramayan: रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। रावण ने दस बार शिव जी को अपना सिर काट कर चढ़ाया और दस बार ही शिव जी ने रावण को उसका शीश लौटा दिया था और उसे आशीर्वाद दिया कि, ‘आप दस बार सिर कटने के उपरान्त ही मर सकेंगे।’ रावण को मारना मुश्किल था क्योंकि रावण को नाभि में अमृत होने का वरदान मिला हुआ था। कहा जाता है कि रावण अत्यधिक शक्तिशाली था और उसने 33 करोड़ देवी-देवताओं को भी कैद कर लिया था।
सीता को रावण की जेल से मुक्त कराने के लिए, श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ लेकिन राम-रावण को नहीं मार सके। तब, विभीषण ने श्री राम जी से कहा कि रावण की नाभि में तीर लगने पर ही रावण का वध हो सकता है लेकिन रामचंद्र के सारे प्रयास व्यर्थ गए। फिर, रामचंद्र जी ने सर्वोच्च भगवान कबीर साहेब जी का आह्वान किया। आदि राम (कबीर साहेब जी) ने गुप्त रूप में रामचंद्र के हाथों पर हाथ रखा और रावण की नाभि में तीर मारा। इस तरह आदि राम की कृपा से रावण मारा गया।
इसका उल्लेख सूक्ष्म वेद में किया गया है,
कबीर, सर्व सोने की लंका थी, वो रावण से रणधीरं |
एक पलक मे राज विराजै, जम के पड़ै जंजीरं ||
पूज्यनीय भगवान कबीर साहेब जी बताते हैं, रावण की पूरी लंका सोने से बनी थी। वह बहुत शक्तिशाली शासक था। परन्तु फिर भी लंकापति रावण जैसा महापुरुष एक ही क्षण में राख हो गया।
रावण का वध श्री रामजी ने नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने किया था। उसी प्रकार सीता जी भी रावण की कैद में होते हुए कैसे बची रहीं, इसके पीछे भी कबीर साहेब जी की ही शक्ति थी।
श्री राम ने सीता जी की अग्नि परीक्षा क्यों ली?
Ramayan: त्रेता युग में श्री विष्णु जी के अवतार भगवान राम ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया था। ये तीन लोक के स्वामी है। लेकिन ये पूर्ण प्रभु नही है । इनसे भी ऊपर और प्रभु है, जिसे पवित्र गीता जी मे “क्षर पुरुष” कहा है । ये जब चाहे , जिसको चाहे , बुद्धि तथा ताकत देता है व नष्ट कर देता है । युद्ध समाप्त हो गया, रावण मारा गया और सीता जी को रावण की कैद से छुड़ा लिया गया। जब सीता जी वापस लौटीं तो श्री रामचंद्र जी ने सीता जी की अग्नि परीक्षा ली, यह क्रिया कई लोगों की उपस्थिति में हुई। सीता जी अग्नि परीक्षा में सफल हुईं।
तब, भगवान राम ने सीता जी को स्वीकार किया और रावण के विमान में लक्ष्मण और हनुमान के साथ अयोध्या वापस लौट आए। यह परीक्षा राम जी ने समाज के डर से यह देखने के लिए ली थी कि सीता अभी भी सती है या नहीं अगर सीता सती नहीं होगी तो इसी अग्नि में जल कर मृत्यु को प्राप्त हो जायेगी और अगर सती होगी तो अग्नि उनका कुछ नहीं कर पाएगी और समाज को भी विश्वास ही जायेगा की सीता माता ने राम जी के अलावा किसी अन्य पुरुष की तरफ कभी देखा भी नहीं जिससे राम जी की लाज रहे जायेगी।
रामजी ने गर्भवती सीता को घर से क्यों निकाल दिया था?
Ramayan: एक दिन जब राम अयोध्या में विचरण कर रहे थे, तब उन्होंने एक धोबी को अपनी पत्नी के साथ झगड़ा करते सुना, क्योंकि वह अपने पति की सहमति के बिना घर छोड़कर चली गई थी। धोबी ने अपनी पत्नी को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि ”वह श्री राम जैसा मूर्ख नहीं है जिसने सीता को बारह वर्ष तक लंका में अपने पति (राम) के बिना अन्य व्यक्ति (रावण) के साथ रहने के बावजूद भी स्वीकार किया।‘ ऐसे शब्द सुनकर राम शर्मिंदा हो गए और वापस महल में आकर राम जी ने लक्ष्मण जी को पूरी बात बताई कि नगरवासी सीता की पतिव्रता होने के बारे में कैसे गपशप कर रहे हैं। इस घटना ने श्री राम जी को व्याकुल कर दिया।
उन्होंने तुरंत ही सीता जी को महल में बुलाया। सीता जी उस वक़्त गर्भवती थी लेकिन राम जी ने इस पर कोई भी विचार नहीं किया और सीता जी को महल से निष्कासित कर दिया। सीता जी द्वारा कई बार विनती करने के बाद भी राम जी ने कोई मानवीय व्यवहार (संवेदनशीलता) नहीं दिखाया। इस घटना के उपरान्त सीता जी ने अपना शेष जीवन वनवास में व्यतीत किया। भगवान राम ने यह कहते हुए सभा छोड़ दी कि ‘मैं आलोचना का विषय नहीं बनना चाहता। मेरा वंश कलंकित हो जाएगा।‘
Ramayan: लव-कुश कौन थे?
Ramayan: सीता जी के अयोध्या छोड़ने के बाद उन्होंने ऋषि वाल्मीकि जी के आश्रम में शरण ली, जहाँ उन्होंने लव नामक एक पुत्र को जन्म दिया। एक बार सीता जी अपने पुत्र लव के साथ किसी काम के लिए आश्रम से बाहर गई थीं लेकिन ऋषि वाल्मीकि इस बात से अनभिज्ञ थे। ऋषि जी ने सोचा कि लव कहीं खो गया है और इस डर से कि वह सीता को क्या बताएँगे जब वह आश्रम लौटेगी और लव के बारे में पूछेगी; उन्होंने अपनी शक्ति से ‘कुशा घास’ से एक लड़का बना दिया। इस तरह, लव और कुश राम और सीता के दो पुत्र बन गए लेकिन श्री राम इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे।
Ramayan: श्री राम और सीता जी की मृत्यु कैसे हुईं?
एक बार श्री रामचंद्र जी ने अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का आयोजन किया। उनके पुत्रों लव और कुश ने यज्ञ के उस घोड़े को बांध दिया और श्री राम को युद्ध के लिए ललकारा। श्री राम अनभिज्ञ थे कि लव और कुश उनके पुत्र हैं। श्री राम और लव-कुश का युद्ध हुआ और श्री राम को अपने ही बेटों के हाथों हार का सामना करना पड़ा। जब सीता को यह पता चला तो वह बहुत दुःखी हो गईं और उन्होंने श्री राम को देखने से भी इनकार कर दिया।
दुःख में सीता जी ने पृथ्वी में प्रवेश किया और अपना जीवन समाप्त कर लिया। इस पश्चाताप में श्री राम ने अयोध्या के पास सरयू नदी में जल समाधि’ लेकर अपना जीवन समाप्त किया। श्री राम और सीता जी दोनों ने दयनीय जिंदगी बिताई और दोनों की मृत्यु भी बेहद दर्दनाक थी।