Hanuman Ji: पवित्र हिन्दू धर्म में जब भी किसी सच्चे, दृढ़ भक्त व सेवक का जिक्र होता है तो हनुमान जी का नाम सर्वप्रथम आता है, जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भगवान श्री राम की ही सेवा करना था, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। हनुमान जी को महावीर, पवनसुत, रामदूत, मारुति नंदन, कपीश, बजरंग बली आदि नामों से भी जाना जाता है,
Hanuman Ji: हनुमान जी कौन हैं?
Hanuman Ji: हनुमान जी को हिन्दू देवी-देवताओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है। भगवान हनुमान को तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली भगवान माना जाता है। महावीर हनुमान को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार कहा जाता है और वे प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त माने जाते हैं। हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। हनुमान का जन्म किष्किंधा में अंजनी और केसरी के यहां हुआ था इसलिए उन्हें ‘अंजनेय’, ‘अंजनिपुत्र’, ‘अंजनी सुता’ कहा जाता है।
वे वायु देव के आशीर्वाद से पैदा हुए थे इसलिए उन्हें ‘पवनपुत्र’ भी कहा जाता है। हनुमान को ‘बजरंगबली’ यानी ‘शक्ति के देवता’ कहा जाता है। उनको ‘संकटमोचन भी’ कहा जाता है यानी बुराइयों / खतरों का नाश करने वाला। हिंदू भक्तों का मानना है कि हनुमान एक ऐसे भगवान हैं जो अपने भक्तों के रक्षक हैं।
हनुमान भगवान शिव के अवतार हैं
सन्दर्भ: कबीर सागर में अध्याय ‘हनुमान बोध’
हनुमान कोई साधारण बालक नहीं थे। कबीर सागर में वर्णित पूजनीय सर्वशक्तिमान कबीर जी की वाणी के कुछ अंश बताते हैैं कि हनुमान भगवान शिव के 11 वें रुद्र अवतार थे।
गौतम ऋषि की पत्नी नारी, नाम अहिल्या राम उबारी
नाम अंजनी पुत्री ताकी, जनम ल्यो कोख मैं जाकी
साधु रूप धरि शिव बन आये, जहँ अंजनी को मंडप छाये।
प्यास-प्यास कहे बोले बानी, शिव की गती मतन ही जानी
सिंग नाद रहे शिव पासा, फुक्यो कान रहित बासा
छलकर बीज सीख तब डारी, ऐसे उपजे देह हमारी।
Hanuman Ji: भगवान राम ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था जिनकी अंजनी नाम की एक बेटी थी। अंजनी भगवान शिव की उपासक थी। एक बार, जब अंजनी पूजा में मग्न थी तब भगवान शिव अंजनी के समक्ष ऋषि के रूप में प्रकट हुए और शब्द गाया और ‘वायु देव’ की सहायता से उस ‘नाद’ को अंजनी के कान में फूँक दिया। उस ‘नाद’ की शक्ति से अंजनी के गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ। इसलिए, हनुमान को ‘पवनपुत्र’ कहा जाता है और इस प्रकार वे भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार हैं।
क्या हनुमान जी की आराधना से मुक्ति सम्भव है?
हालाँकि, हनुमान को ‘संकटमोचन’, ‘महाबली’, ‘चिरंजीवी’ माना जाता है, जो कई दैवीय शक्तियों से युक्त हैं, फिर भी उनकी पूजा के तरीके जैसे ‘हनुमान चालीसा’ या ‘सुंदरकांड का पाठ ‘ या ‘जय बजरंग बली’ जैसे मंत्रों का जाप या ‘ॐ श्री हनुमते नमः’ या यह गुप्त मंत्र ‘काल तंतु कारे चरन्तिए नरमरिष्णु ,निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु’ जिसके बारे में यह माना जाता है कि इस मंत्र के जपने से हनुमान अपने साधकों को दर्शन देते हैं तथा हनुमान जयंती ‘जैसे त्यौहार मनाते हैं।
यह मनमानी पूजा है जो पवित्र श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 9 श्लोक 23, अध्याय 16 श्लोक 23, 24, अध्याय 17 श्लोक 6 के अनुसार व्यर्थ है। ऐसी पूजा जो शास्त्रों में निषेध हो, वह आत्माओं को काल के जाल से मुक्त नहीं कर सकती। ऐसी भक्ति करने से साधक स्वर्ग- नरक और 84 लाख प्रजातियों के जीवन को ही प्राप्त करते हैं। वे मोक्ष प्राप्त नहीं करते तथा जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र में ही फंसे रहते हैं।
श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 14 श्लोक 3 और 4, श्रीमद्भगवद देवी पुराण और शिव महापुराण इस बात का प्रमाण देते हैं कि भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव जन्म लेते और मरते हैं। वे अमर नहीं हैं इससे सिद्ध होता है कि उनके अवतार और भक्त कैसे मुक्त हो सकते हैं? पवित्र शास्त्रों के प्रमाणों की अनदेखी किए बिना, हनुमान के भक्तों को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि हनुमान की पूजा से मुक्ति संभव नहीं है।
हनुमान जी के गुरु कौन थे?
लोगों का मानना है कि हनुमान जी ने ऋषि मतंग तथा सूर्य देवता,को अपना गुरु बनाया था । सूर्य ने हनुमान जी के जन्म में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन पवित्र कबीर सागर के साक्ष्यों से सिद्ध होता है कि त्रेता युग में ऋषि मुनिन्द्र के रूप में दिव्य लीला करने वाले सर्वोच्च परमात्मा कबीर जी हनुमान के गुरु थे।
लंका से लौटते समय हनुमान जी की मुलाकात ऋषि मुनिन्द्र जी से हुई थी तब उन्होंने उनका ज्ञान सुनने से इंकार कर दिया था। लेकिन बाद में हनुमान जी अयोध्या छोड़कर सर्वशक्तिमान कविर्देव जो ऋषि मुनिन्द्र जी के नाम से आए हुए थे उनके पास गए और वही ज्ञान दुबारा से बताने की प्रार्थना की। कविरदेव उर्फ मुनिंद्र जी हनुमान जी को सच्चा ज्ञान प्रदान किया । जिसके बाद हनुमान जी ने सतलोक देखने की प्रार्थना की। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने हनुमान जी को शाश्वत स्थान ‘सतलोक’ दिखाया और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान किये जिनको जाप करने से हनुमान जी मोक्ष प्राप्त करने के योग्य बन गए।
हनुमान जी ने रावण की लंका क्यों जला दी थी?
जब रावण सीता माता को उठा कर ले गया था तब राम जी ने हनुमान जी को राजदूत बना कर सीता माता की स्थिति देखने के लिए लंका भेजा था।श्री रामचन्द्र जी ने श्री हनुमान जी को सीता को विश्वास दिलाने के लिए अपनी अँगूठी दी जिस पर श्री राम लिखा था। सीता उस अँगूठी से हनुमान पर विश्वास कर सकती थी कि जो मुझसे मिलने आया है, वह श्री राम का भेजा हुआ है। हनुमान जी श्री राम की मुंद्री लेकर आकाश मार्ग से उड़कर श्रीलंका में गए। रावण का एक नौ लखा बाग था। उसमें सीता जी को रावण राक्षस ने कैद कर रखा था।
हनुमान जी ने सीता माता को अँगूठी देकर अपना विश्वास दिलाया। सीता जी ने अपना सर्व कष्ट जो राक्षस रावण दे रहा था, हनुमान जी को बताया। सीता जी ने अपना कंगन (सुहाग का कड़ा) हाथ से निकालकर हनुमान जी को दिया। कहा कि भाई! आप यह कंगन श्री राम जी को दिखाओगे, तब उनको विश्वास होगा कि तुम सीता की खोज करके आए हो। हनुमान जी के साथ सीता जी ने आने से इंकार कर दिया।
हनुमान ने माता सीता से मिलने के पश्चात अशोक वाटिका को उजाड़ दिया व लंका के सेनापति जंबुमली व रावण के सबसे छोटे पुत्र अक्षय कुमार का वध कर डाला। इसके बाद रावण ने अपने सबसे बड़े पुत्र मेघनाथ को हनुमान से युद्ध करने भेजा। मेघनाथ ने हनुमान को ब्रह्मास्त्र की शक्ति से बंधक बनाया व रावण के दरबार में लेकर आया। जब हनुमान को रावण के दरबार में लाया गया तब हनुमान ने रावण को उसके द्वारा किये गए अधर्म के कार्य याद दिलाये व उसे माता सीता को लौटने व श्रीराम की शरण में जाने का अनुरोध किया। जब रावण नही समझा तो हनुमान ने उसे चेतानवी दी कि यदि वह अभी भी नही संभला तो एक दिन लंका समेत उसका विनाश हो जायेगा। रावण के दरबार में किसी ने भी इस प्रकार से बात करने का दुस्साहस नही किया था।
यह पहला अवसर था जब किसी ने रावण से उसी के दरबार में इस प्रकार बात की थी। पूरी सभा में स्वयं के अपमान को रावण सह ना सका व उसने हनुमान की गर्दन काटने का आदेश अपने सैनिकों को दिया।रावण के दरबार में किसी ने भी इस प्रकार से बात करने का दुस्साहस नही किया था। यह पहला अवसर था जब किसी ने रावण से उसी के दरबार में इस प्रकार बात की थी। पूरी सभा में स्वयं के अपमान को रावण सह ना सका व उसने हनुमान की गर्दन काटने का आदेश अपने सैनिकों को दिया।
रावण के हनुमान की हत्या का आदेश देने के पश्चात विभीषण खड़े हुए व उन्हें ऐसा करने से रोका। उसने रावण को समझाया कि किसी भी दूत की हत्या करना अधर्म व नीति विरुद्ध है। उसके अनुसार हनुमान केवल एक दूत है व उसकी हत्या करके रावण को कुछ प्राप्त नही होगा। यदि रावण को प्रतिशोध लेना ही है तो वह उसके स्वामी से ले, ना कि दूत की हत्या करके।
रावण ने जब अपने मंत्रियों से परामर्श लिया तो उन्होंने भी उसे यह कहा कि दूत की हत्या करना राज धर्म के विरुद्ध है। उनके अनुसार दूत अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करता है व उसी के अधीन होता है। इसलिये कहीं भी दूत की हत्या का प्रावधान नही है।
यदि दूत किसी प्रकार का उद्दंड करता है या किसी प्रकार की क्षति पहुंचता है तो उसके लिए कई अन्य प्रकार के दंड निर्धारित किये गए है जैसे कि उसका कोई अंग काट देना, उसका मुंडन कर देना या उसके शरीर में कोई हानि पहुँचाना। इसलिये उसके मंत्रियों के अनुसार यदि दूत शत्रु की भांति भी व्यवहार करता है तो भी उसे मृत्यु दंड नही दिया जाना चाहिए।
रावण विभीषण व अपने मंत्रियों की बात पर सहमत हो गया व उसने हनुमान को मृत्यु दंड देने की आज्ञा वापस ले ली। इसके बाद रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगाने का सोचा क्योंकि वानरों को अपनी पूँछ से अत्यधिक प्रेम होता है। यदि हनुमान अपनी जली हुई पूँछ लेकर वापस जायेगा तो वानर सेना में उसका अपमान होगा, यही सोचकर रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगाने की आज्ञा दी। जिसके बाद हनुमान जी ने उसी जलती पुंछ से पूरी सोने की लंका जला दी थी।
महान शख्सियत के धनी कबीर साहेब का प्रकट दिवस, इनका जन्म नहीं हुआ था।
सीता जी से मिल के लौट रहे हनुमान जी के साथ क्या अद्भुत घटना हुई?
लंका से लौट रहे हनुमान जी आकाश मार्ग से उड़कर समुद्र पार करके एक पहाड़ी पर उतरे, सुबह का समय था। पहाड़ पर जलाशय पवित्र जल से भरा था। पास ही बाग था जिसमें फलदार वृक्ष थे। हनुमान जी को भूख लगी थी उन्होंने वहां रुक कर स्नान करने का विचार किया। कंगन को एक पत्थर पर रख दिया। स्नान करते समय भी हनुमान की एक आँख कंगन पर लगी थी। लंगूर बंदर आया उसने कंगन उठाया और भाग गया। हनुमान जी को चिंता बनी कि कहीं बंदर इस कंगन को समुद्र में न फैंक दे, मेरा परिश्रम पर पानी न फिर जाए। अब लंका में जाने का रास्ता भी बंद हो गया है। अजीब परेशानी में हनुमान जी बंदर के पीछे-पीछे चले। देखते-देखते बंदर ने वह कंगन एक ऋषि की कुटिया के बाहर रखे एक घड़े में डाल दिया और आगे दौड़ गया। हनुमान जी ने राहत की श्वांस ली। कलश में झांककर कंगन निकालना चाहा तो देखा घड़े में एक जैसे अनेकों कंगन थे। हनुमान जी को फिर समस्या हुई। कंगन उठा-उठाकर देखे, कोई अंतर नहीं पाया। उन्हें समझ नही आ रहा था सीता माता के असली कंगन कौन-सा है? कहीं मैं गलत कंगन ले जाऊँ और श्री राम कहे, यह कंगन सीता का नहीं है, मेरा प्रयत्न व्यर्थ हो जाएगा। सामने एक ऋषि हनुमान जी की परेशानी को देखकर मुस्करा रहे थे। ऋषि जी बोले, आओ पवन पुत्र! किस समस्या में हो? हनुमान जी ने कहा कि ऋषि जी! श्री रामचन्द्र जी की पत्नी को लंका का राजा रावण अपहरण करके ले गया है। मैं पता करके आया हूँ। ऋषि जी ने कहा कि कौन-से नम्बर वाले रामचन्द्र की बात कर रहे हो? हनुमान जी को आश्चर्य हुआ कि ऋषि अपने होश-हवास में है या भाँग पी रखी है? हनुमान जी ने पूछा, हे ऋषि जी! क्या राम कई हैं? ऋषि जी ने कहा, हाँ, कई हो चुके हैं और आगे भी जन्मते-मरते रहेंगे। हनुमान जी को ऋषि का व्यवहार उचित नहीं लगा, परंतु ऋषि जी से विवाद करना भी हित में नहीं जाना। ऋषि जी ने पूछा, आप फल खाओ। मैं खाना बनाता हूँ, भोजन खाओ। थके हो, विश्राम करो। हनुमान जी ने कहा, ऋषि जी! मेरी तो चैन-अमन ही समाप्त हो गई है। मेरे को सीता माता ने कंगन दिया था। उस कंगन के बिना श्री रामचन्द्र जी को विश्वास नहीं होना कि सीता की खोज हो चुकी है। उस कंगन को पत्थर पर रखकर मैं स्नान कर रहा था। बंदर ने उठाकर घड़े में डाल दिया। मेरी पहचान में नहीं आ रहा कि वास्तविक कंगन कौन-सा है। मेरे को तो सब एक जैसे लग रहे हैं। ऋषि रूप में बैठे परमेश्वर कबीर जी ने कहा, हे पवन के लाडले! आप कोई एक कंगन उठा ले जाओ, कोई अंतर नहीं है और कहा कि जितने कंगन इसमें पड़े हैं। इतनी बार दशरथ पुत्र राम को बनवास, सीता हरण और हनुमान द्वारा खोज हो चुकी है। हनुमान जी ने कहा, ऋषि जी! यह बताओ, अगर आपकी बात सत्य है तो ,प्रत्येक बार सीता हरण, हनुमान का खोज करके कंगन लाना और बंदर द्वारा घड़े में डालना होता है तो कंगन यहाँ रह कैसे गया, हनुमान लेकर क्या जाता है? ऋषि मुनीन्द्र जी ने कहा कि मैंने इस घड़े को आशीर्वाद दे रखा है कि जो वस्तु इसमें गिरती है, वह दो एक समान हो जाती है। यह कहकर ऋषि जी ने एक मिट्टी का कटोरा घड़े में डाला तो वैसा ही दूसरा कटोरा उस घड़े में बन गया। ऋषि मुनीन्द्र जी ने कहा, हे हनुमान! आप एक कंगन ले जाओ, आपको कोई परेशानी नहीं आएगी। हनुमान जी के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। उस घड़े से एक कंगन निकालकर उड़ चले।
क्या हिंद महासागर पर राम सेतु पुल का निर्माण हनुमान जी ने किया था?
भगवान राम ने रावण की कैद से सीता को वापस लाने के लिए वानर सेना और अन्य सभी की मदद से एक पुल बनाने का फैसला किया। सेना में दो भाई थे ‘नल-नील’ जो ऋषि मुनिन्द्र जी के शिष्य थे। ऋषि मुनिन्द्र जी ने उनकी बीमारी को ठीक किया था और उन्हें आशीर्वाद दिया था कि अगर वे पानी में अपने हाथों से कोई वस्तु डालते हैं, तो वह डूबेगी नहीं बल्कि वह पानी पर तैरने लगेगी जैसे पत्थर, कांस्य के बर्तन, आदि लेकिन ‘नल-नील’ को अभिमान हो गया और वे अपने गुरु को भूल गए जिसके कारण उनकी शक्ति चली गयी।
भगवान राम ने तीन दिनों तक सागर में खड़े होकर समुद्र देवता की आराधना की ताकि महासागर सेना को जाने के लिए रास्ता दे लेकिन समुद्र देवता ने ऐसा नहीं किया। इससे क्षुब्ध होकर राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को आदेश दिया, “मेरा अग्नि बाण निकालो” यह प्रार्थना की नहीं अपितु कठोरता की भाषा समझेंगे।” उसी समय समुद्र देवता ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और हाथ जोड़कर श्री राम के सामने खड़े हो गये और कहा, “भगवान! एक पूरी दुनिया मेरे अंदर बसी हुई है। कृप्या! आप पाप के भागी ना बनें। कुछ ऐसा करें जिससे आपका काम भी हो जाए और किसी को कोई नुकसान भी न हो।”
ब्राह्मण रूप में समुद्र ने रामचंद्र को ‘नल-नील’ की शक्ति के बारे में बताया। लेकिन ‘नल-नील’ पत्थरों को पानी पर तैराने वाली अपनी शक्ति खो चुके थे। तब ऋषि मुनिन्द्र ( कविर्देव ) को रामचंद्र ने याद किया जो ‘सेतुबंध’ में प्रकट हुए और उन्होंने रास्ते के पहाड़ के चारों ओर अपनी छड़ी से एक रेखा को चिह्नित किया और बताया, “मैंने पहाड़ के चारों ओर रेखा के अंदर के पत्थरों को लकड़ी से हल्का बना दिया है। वे डूबेंगे नहीं। उन हलके पत्थरों से आप पुल का निर्माण करें।” हनुमान राम के भक्त थे। पहचान के लिए हनुमान ने उन पत्थरों पर ‘राम-राम’ लिख दिया। वे पत्थर नहीं डूबे। नल और नील वास्तुकार थे उन्होंने पत्थरों को तराशा और अपने गुरु मुनिन्द्र जी के आशीर्वाद से सेतु का निर्माण किया। भगवान राम ने अपनी सेना के साथ लंका की ओर कूच किया और राम- रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया। इस तरह से पुल का निर्माण परमात्मा कविर्देव जी के आशीर्वाद से हिंद महासागर पर किया गया था जो अब भी मौजूद है और इसे ‘राम सेतु’ कहा जाता है जो भारत और श्रीलंका को जोड़ता है।
हनुमान जी ने अयोध्या पति राम की नगरी क्यों छोड़ दी थी?
अयोध्या लौटने के बाद भगवान राम, सीता अपने परिवार के साथ खुशी से रहने लगे। एक दिन सीता ने युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओं को पुरस्कृत करने का फैसला किया। सीता ने हनुमान को सच्चे मोती का हार भेंट किया। हनुमान ने एक मोती तोड़ा, उसे कुचल दिया, इसी तरह अन्य सभी मोतियों को भी तोड़ा और फेंक दिए।
सीता ने नाराज़ होकर हनुमान को डांटा, उनका अपमान करते हुए कहा, “हे मूर्ख! यह क्या किया? तुमने इतना कीमती हार नष्ट कर दिया। तुमने केवल बंदर की तरह ही व्यवहार किया। मेरी आँखों से दूर चले जाओ।” भगवान राम भी वहीं उपस्थित थे, सब देख रहे थे लेकिन शांत रहे। हनुमान जी ने कहा, “माँ! जिस वस्तु में राम का नाम अंकित नहीं, वह मेरे किसी काम की नहीं है। इन मोतियों को तोड़कर मैंने देखा इनमें राम नाम अंकित नहीं है, इसलिए यह मेरे किसी काम के नहीं हैं।
सीता जी ने कहा, “क्या तुम्हारे शरीर में राम का नाम लिखा है? फिर तुमने यह शरीर अब तक क्यों रखा है? इसे भी नष्ट कर दो।” उसी क्षण हनुमान जी ने अपना सीना चीर कर दिखाया, वहां ‘राम-राम’ लिखा था। इसके बाद हताश हनुमान ने तुरंत अयोध्या को त्याग दिया और वहां से कहीं दूर चले गए।
सीता जी द्वारा इस अनादर ने हनुमान का दिल तोड़ दिया।
Vat Savitri Vrat: कब है वट सावित्री व्रत? इससे लाभ है या नहीं?
हनुमान जी ने सर्वशक्तिमान कविर्देव की शरण क्यों ग्रहण की?
सर्वोच्च परमात्मा कबीर जी त्रेता युग में ऋषि मुनिन्द्र जी के रूप में धरती पर आए हुए थे। अयोध्या को त्यागने के बाद हनुमान जी एक पहाड़ पर बैठकर भजन कर रहे थे। पूर्ण परमात्मा कबीर जी मुनीन्द्र ऋषि रूप में एक बार फिर हनुमान जी के पास गए और कहा कि हे”राम भक्त जी!” इतना सुनते ही हनुमान जी ने पीछे मुड़कर देखा तो हनुमान जी असमंजस में थे, बोले- हे ऋषिवर! मुझे ऐसा लग रहा है कि आपको कहीं देखा है। तब मुनींद्र साहिब ने हनुमान जी को पिछला वृतांत स्मरण कराया। हनुमान जी को सब कुछ याद आया और ऋषि जी को स-सम्मान बिठाया।
मुनींद्र जी फिर प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी! आप जो साधना कर रहे हो, यह पूर्ण नहीं है। यह तुम्हारा पूर्ण मोक्ष नहीं होने देगी। यह सब काल जाल है। फिर मुनीन्द्र जी ने “सृष्टि रचना” सुनाई तथा ब्रह्म-काल के 21 ब्रह्मांडों की स्थिति और हर आत्मा के दर्द के बारे में अवगत कराया की किस प्रकार सभी भोली आत्माएं काल के जाल में फंसी हैं और अपने कर्मों के दंड को भोग रही हैं।
चौंसठ योगिनी बावन बीरा, काल पुरुष के बसे शरीरा
सत्य समरथ (भगवान कबीर) है परले पारा, काल कला उपज्यो संसारा
सोइ समरथ है सरजनहारा, तीनों देव न पावे पारा
परमात्मा कबीर जी ने उन्हें भगवान राम का सच बताया कि वे भगवान विष्णु के अवतार हैं और काल के क्षेत्र में केवल एक विभाग (सतोगुण) के स्वामी हैं। नारद जी के श्राप के फलस्वरूप उन्हें मानव जीवन में कष्ट भी उठाना पड़ रहा है।
हनुमान जी बहुत प्रभावित हुए और कहा कि मैं तो अपने रामचन्द्र प्रभु से ऊपर किसी को नहीं मान सकता। हमने तो आज तक यही सुना है कि तीन लोक के नाथ विष्णु हैं और उन्हीं का स्वरुप रामचन्द्र जी आये हैं।
कबीर जी बोले:
काटे बंधत विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियों, गरुड़ बड़ो के राम।।
अगर आपके रामचंद्र समर्थ होते तो नागफांस से खुद को छुड़ा लेते, गरुड़ जी की मदद नहीं मांगते। अब आप ही बताओ की जिस राम को गरुड़ जी ने जीवनदान दिया वह गरुड़ बड़ा है या आपके श्रीराम ?
समन्दर पाटि लंका गयो, सीता को भरतार।
अगस्त ऋषि सातों पीये, इनमें कौन करतार।।
हे हनुमान! आपके राम तो ऋषि अगस्त्य जितनी शक्ति भी नही रखते जिसने सातों समंदर एक घूंट में पी लिए थे।
हनुमान जी बोले, हे ऋषिवर! अगर मैं आपके सतलोक को अपनी आँखों देखूं तो मान सकता हूँ कि जिस राम को मैं सर्वेसर्वा मान बैठा हूँ, वह समर्थ नहीं है।
तब हनुमान सत्य कह मानी, सई मुनींद्र सत्य हो ग्यानी
अब तुम पुरष मोहि दिखाओ, मेरा मन तुम तब पतियाओ
कैसि विधि समरथ को जाना, सो कुछ मोहि सुनाओ ज्ञाना
मुनीन्द्र ऋषि (कबीर परमात्मा) जी द्वारा हनुमान जी को सतलोक दर्शन
फिर मुनीन्द्र ऋषि ने हनुमान जी को दिव्य दृष्टि देकर सतलोक दिखाया। ऋषि मुनीन्द्र जी सिंहासन पर बैठे दिखाई दिए। उनके शरीर का प्रकाश अत्यधिक था। सिर पर मुकुट तथा राजाओं की तरह छत्र था। परमात्मा ने हनुमान जी को सतलोक का पूरा दृश्य दिखाया। साथ में तीन लोकों के भगवानों के स्थान भी दिखाए और वह काल दिखाया जो एक लाख जीवों का प्रतिदिन आहार करता है। उसी को ब्रह्म, क्षर पुरुष तथा ज्योति स्वरूप निरंजन भी कहते हैं।
देखत चंद्र वरन उजियारा, अमृत फल का करे अहारा।
असंख्य भानु पुरुष उजियारा, कोटिन भानु पुरुष रोम छ विभारा।
तब हनुमान ठाक ता मारी, तुम मुनींद्र अहो सुखकारी।
कुछ देर वह दृश्य दिखाकर दिव्य दृष्टि समाप्त कर दी। मुनीन्द्र जी नीचे आए। हनुमान जी को विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है। परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली। अपना जीवन धन्य किया। मुक्ति के अधिकारी हुए। कबीर जी ने हनुमान को सच्चा मोक्ष मंत्र दिया और उनमें भक्ति बीज बोकर मोक्ष प्राप्त करने के योग्य बनाया।
इस तरह, परम देव कबीर जी ने एक पवित्र आत्मा, हनुमान जी को अपनी शरण में लिया। परोपकारी हनुमान जी को निस्वार्थ भाव से प्रभु की सेवा करने का फल प्राप्त हुआ। परमात्मा कविर्देव स्वयं आए, हनुमान को मोक्ष मार्ग बताया और उनका कल्याण किया। हनुमान जी फिर से एक मानव जीवन प्राप्त करेंगे फिर सर्वोच्च परमात्मा कबीर जी उनको शरण में लेने के बाद मोक्ष प्रदान करेंगे।
कबीर परमात्मा धरती पर मौजूद हैं
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं कबीर जी के स्वरूप अर्थात पूर्ण परमात्मा के रूप में धरती पर अवतरित हैं जिनके पास वही सतभक्ति विधि है जो हनुमान जी को बताई थी।
सद्ग्रन्थों से प्रमाणित केवल इसी सतभक्ति से जीव का कल्याण सम्भव है और पूरी धरती पर यह सतभक्ति संत रामपाल जी महाराज के अलावा अन्य किसी के पास नहीं है। इसी कारण से नकली संत, कथाकार, शंकराचार्य व नकली धर्मगुरुओं के नकली ज्ञान की नकली दुकानें बन्द होने लगीं तो संत रामपाल जी महाराज को साजिश के तहत फंसाकर जेल में डाल दिया गया। लेकिन संत रामपाल जी महाराज पूर्ण परमात्मा हैं जो अपनी मर्जी से जेल में रहकर लीला कर रहे हैं। जल्दी से उनकी शरण ग्रहण करो और अपना कल्याण कराओ।
अतः आप सभी से विनम्र प्रार्थना है कि मनुष्य जीवन अनमोल है जो हमें परमात्मा की सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए मिला है। इस मनुष्य जीवन को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं क्योंकि, सभी देवी-देवता जन्म मृत्यु में हैं और मनुष्य जीवन प्राप्त किये बिना परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है।
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