Kabir Ji Story: सुने सुनाए अज्ञान के कारण कुछ लोगों का मानना है कि कबीर साहेब जी शादीशुदा थे और उनकी पत्नी का नाम लोई था। कबीर साहेब पति और लोई को उनकी पत्नी बताकर बहुत सी दन्त कथाए बना दी गई। जबकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि कबीर साहेब की कोई पत्नी थी। Kabir Ji Story कबीर साहेब जी की बहुत सी वाणियों में ‘‘लोई’’शब्द का प्रयोग हुआ है। जिससे अनजान लोगों ने लोई को उनकी पत्नी समझ लिया। जबकि संतों की वाणियों में ‘‘लोई’’शब्द स्त्री जाति को संबोधन करने के लिए प्रयोग हुआ है।
जैसे आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज जी की एक वाणी है:-
दास गरीब कहै नर लोई। योह पद चीन्हे बिरला कोई।।
यहां ‘‘नर लोई’’ नर (पुरूष) नारी (स्त्री)’’ के लिए संबोधित है। हैरानी की बात है कि कुछ पुस्तकों में साहेब की दो शादियों जैसी भ्रांतियां भी लिखी हैं। यह संतों की वाणियां न समझ पाने के कारण हुआ है। सच तो यह है कि कबीर साहेब की शादी कभी हुई ही नहीं थी। वह पृथ्वी पर अपने पूरे समय अविवाहित ही रहे।
कबीर सागर में अगम निगम बोध में भी प्रमाण है:-
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
Kabir Ji Story इससे आगे एक और भ्रांति है कि कबीर साहेब की एक बेटा और एक बेटी दो संतान थी। बेटे का नाम कमाल और बेटी का नाम कमाली। जबकि सच्च इस से विपरीत है। वास्तव में कमाल तथा कमाली कबीर साहेब की मुँह बोली तान थी, जिन्हें कबीर साहेब जी ने किसी कारणवश मुर्दा जिंदा किया तथा अपने पुत्र-पुत्री रूप में रखा। इसके पीछे कारण था कि कबीर साहेब जी ने यह बात भी प्रमाणित की कि घर परिवार में रहकर बच्चों का पालन पोषण करते हुए भी भक्ति की जा सकती है। परमात्मा प्राप्ति और भक्ति के लिए सन्यासी होने या घर त्यागने की आवश्यकता नहीं है । कमाल और कमाली को जीवित करने की सत्य कथा इस प्रकार है:-
Kabir Ji Story दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी को एक भयंकर जलन का रोगमहो गया था जो किसी भी प्रकार ठीक नहीं हो पाया । अंतता वह रोग कबीर साहेब जी के आशीवार्द मात्र से ठीक हो गया था तथा एक बार स्वामी रामानंद जी ने बादशाह सिंकदर को मासाहारी मुसलमान होने के कारण अपने आश्रम में आने से मना कर दिया था। इसपर बादशाह सिकंदर लोदी ने धर्म भेदभाव की बात सुनकर स्वामी रामानंद जी (जो कबीर जी के गुरू थे) की गदर्न पर तलवार मारकर गदर्न धड़ से अलग कर दी यानि कत्ल कर दिया। परमेश्वर कबीर जी ने बादशाह सिकंदर लोधी और अनेकों अन्य लोगों के सामने स्वामी रामानंद को जीवित कर दिया। ऐसी-ऐसी अन्य कई लीलाएं देखकर राजा सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब जी का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था। जिस कारण से उनका धामिर्क पीर शेखतकी राजा से मुँह चिढ़ाए फिर रहा था।
Kabir Ji Story: राजा को डर हो गया कि यह मुसलमानों को मेरे खिलाफ भड़का देगा। राजा ने शेखतकी से कहा कि आप कैसे प्रसन्न होंगे। शेखतकी ने कहा कि मैं तब प्रसन्न होऊँगा जब मेरे सामने यह कबीर कोई मुर्दा जीवित कर दे। कबीर साहेब से प्राथर्ना हुई तो कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। (कबीर साहेब ने सोचा कि यह अनाड़ी आत्मा शेखतकी है। अगर यह मेरी बात मान गया तो आधे से ज्यादा मुसलमान इसकी बात स्वीकार करते हैं क्योंकि यह दिल्ली के बादशाह का पीर है और अगर यह सही ढंग से मुसलमानों को बता देगा तो बेचारी भोली आत्माएँ इन गुरूओं पर आधारित होती हैं। उन सब का कल्याण हो सकता है) इसलिए कहा कि ठीक है शेखतकी ढूँढ़ ले कोई मुर्दा।
सुबह एक 10,12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी में तैरता हुआ आ रहा था। शेखतकी ने कहा कि वह आ रहा है मुर्दा, इसे जिन्दा कर दो। कबीर साहेब ने कहा पहले आप प्रयत्न करो, कहीं फिर पीछे नम्बर बनाओ। उपस्थित मंत्रियों तथा सैनिकों ने कहा कि पीर जी आप भी कोशिश करके देख लो। शेखतकी जन्त्र-मन्त्र करता रहा। इतने में वह मुर्दा तीन फलांर्र्ंग आगे चला गया। शेखतकी ने कहा कि यह कबीर चाहता था कि यह बला सिर से टल जाए। कहीं मुर्दे भी जीवित होेते हैं? मुर्दे तो कयामत के समय ही जीवित होते हैं।
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Kabir Ji Story: कबीर साहेब बोले महात्मा जी आप बैठ जाओ, शान्ति करो। कबीर साहेब ने उस मुर्दे कोे हाथ से वापिस आने का संकेत किया। बारह वषीर्य बच्चे का म्रत शरीर दरिया के पानी के बहाव के विपरित चलकर कबीर जी के सामने आकर रूक गया। पानी की लहर नीचे-नीचे जा रही थी और शव ऊपर रूका था। कबीर साहेब ने कहा कि हे जीवात्मा! जहाँ भी है, कबीर हुक्म से मुर्दे में प्रवेश कर और बाहर आ। कबीर साहेब ने इतना कहा ही था कि शव में कम्पन हुई तथा जीवित होकर बाहर आ गया। कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया।
Kabir Ji Story: सर्व उपस्थित जनों ने कहा कि कबीर साहेब ने तो कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम कमाल रख दिया। लड़के को अपने साथ रखा। अपने बच्चे की तरह पालन-पोषण किया और दीक्षा दी। उसके बाद दिल्ली में आ गए। सभी को पता चला कि यह लड़का जो इनके साथ है, यह परमेश्वर कबीर साहेब ने जीवित किया है। दूर तक बात फैल गई। शेखतकी की तो माँ-सी मर गई। सोचा यह कबीर अच्छा दुश्मन हुआ। इसकी तो और ज्यादा महिमा हो गई। शेखतकी की इर्ष्या बढ़ती ही चली गई। उसकी तेरह वषीर्य लड़की को मृत्यु पश्चात् कब्र में जमीन में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा यदि कबीर मेरी लड़की को जो कब्र में दफना रखी है। उसको कबीर जीवित करेगा तो मैं इसे अल्लाह मान लूँगा।
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शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी! हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब खुदा मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है। पूज्य कबीर साहेब से प्राथर्ना हुई। कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माएँ कबीर साहेब के बच्चे हैं।
Kabir Ji Story: यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हम इस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी अल्लाह हैं। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिन निश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिर किसी को शंका न रह जाए।
Kabir Ji Story: हजारों की संख्या में वहाँ पर हिन्दू व मुसलमान लीला के दशर्नार्थ एकत्रित हुए। कब्र खुदवाई उसमें एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की का शव रखा हुआ था। कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप जीवित कर लो। सभी उपस्थित जनों ने कहा है कि महाराज जी! यदि इसके पास कोई ऐसी शक्ति होती तो अपने बच्चे को कौन मरने देता है? अपने बच्चे की जान के लिए व्यक्ति अपना तन मन धन लगा देता है। हे दीन दयाल! आप कृपा करो।
पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहा कि हे शेखतकी की लड़की! जीवित हो जा। तीन बार कहा, लेकिन लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी ने तो भंगड़ा पा दिया। नाचे-कूदे कि देखा न पाखण्डी का पाखंड पकड़ा गया। कबीर साहेब उसको नचाना चाहते थे कि इसको नाचने दे।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईर्ष्या, दुलर्भ तजना ये।।
मान-बड़ाई, ईर्ष्या का रोग बहुत भयानक है। अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था। कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शान्ति रखो। कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा! जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ। कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में शव में कम्पन्न हुई और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई, कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया।
Kabir Ji Story: उस लड़की ने डेढ़ घण्टे तक कबीर साहेब की कृपा से प्रवचन किए। कहा हे भोली! जनता ये भगवान आए हुए हैं। पूर्ण ब्रह्म अन्नत कोटि ब्रह्माण्ड के परमेश्वर हैं। क्या तुम इस को एक मामूली जुलाहा (धाणक) मान रहे हो। हे भूले-भटके प्राणियो! ये आपके सामने स्वयं परमेश्वर आए हैं। इनके चरणों में गिरकर अपने जन्म-मरण का दीर्घ रोग कटवाओ और सत्यलोक चलो। जहाँ पर जाने के बाद जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर से बच जाती है। कमाली ने बताया कि इस काल के जाल से बन्दी छोड़ कबीर साहेब के बिना कोई नहीं छुटवा सकता।
चाहे हिन्दू पद्यति से तीर्थ-व्रत, गीता-भागवत, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद्ध, वेदों का पाठ करना, राम, कृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शिव, शेराँवाली (आदि माया, आदि भवानी, प्रकृति देवी), ज्योति निरंजन की उपासना भी क्यों न करें, जीव चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट से नहीं बच सकता और मुसलमान पद्यति से भी जीव काल के जाल से नहीं छूट सकता। जैसे रोजे रखना, ईद बकरीद मनाना, पाँच वक्त नमाज करना, मक्का-मदीना में जाना, मस्जिद में बंग देना आदि सवर् व्यथर् हैं। कमाली ने सर्व उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाई जो उसे कबीर साहेब की कृपा से याद हो आई थी।
कबीर साहेब ने कहा कि बेटी अपने पिता के साथ जाओ। वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता तो आप हैं। यह तो नकली पिता है। इसने तो मैं मिट्टी में दबा दी थी। मेरा और इसका हिसाब बराबर हो चुका है। सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर परमेश्वर ने कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने लड़की का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह रखा और नाम दिया। उपस्थित व्यक्तियों ने हजारों की संख्या में कबीर परमेश्वर से उपदेश ग्रहण किया। अब शेखतकी ने सोचा कि यह तो और भी बात बिगड़ गई। मेरी तो सारी प्रभुता गई। इस तरह कबीर साहेब को वे दो बच्चे मिले। लड़के का नाम कमाल तथा लड़की का नाम कमाली था। जिनके वे जैविक पिता नहीं थे, पालक पिता थे।
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