Karva Chauth: हिंदू महिलाओं के बीच करवा चौथ (Karwa Chauth 2022) के त्योहार के विशेष महत्व है। विवाहित महिलाओं के लिए करवा चौथ का दिन बहुत ही विशेष होता है। सजना और सवरना का दिन माना जाता है। इस दिन महिलाएं अन्य जल का त्याग करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है। यह दिन प्रेम सिंगार और आस्था से ओतप्रोत होता है। इस करवा चौथ पर हम जानेंगे कि यह व्रत गीता अनुसार सही है या नहीं व्रत की तिथि वार विधि पति की लंबी उम्र कैसे बढ़ेगी। जीवन का मूल उद्देश्य क्या है इन सब बातों के बारे में जानेंगे।
इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और खुशियां आती हैं। (Karwa Chauth Vrat) देश में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। करवा चौथ (Karwa Chauth Date) की रौनक बाजारों में काफी पहले से ही दिखनी शुरू हो जाती है।
Karva Chauth: बता दें कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ (Karwa Chauth Puja Vidhi) मनाया जाता है. इसे करक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस साल करवा चौथ 24 अक्टूबर रविवार को पड़ रहा है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मां पार्वती की पूजा करती है और दिनभर निर्जला व्रत करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं.
कहा जाता है कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी सावित्री ने उनसे अपने पति के प्राणों की भीख मांगी और निवेदन किया कि वह उसके सुहाग को न लेकर जाएं. लेकिन यमराज ने उसकी बात नहीं मानी, जिसके बाद सावित्री ने अन्न-जल त्याग दिया और अपने पति के शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी. पतिव्रता सावित्री के इस तरह विलाप करने से यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि वह अपने पति सत्यवान के जीवन की बजाय कोई और वर मांग ले.
Karva Chauth: सावित्री ने यमराज से कहा कि मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें और यमराज ने भी हां कह दिया. पतिव्रता होने के नाते सावित्रि अपने पति सत्यवान के अतिरिक्त किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. जिसके बाद यमराज ने वचन में बंधने के कारण सावित्री को सत्यवान का जीवन सौंप दिया. कहा जाता है कि तभी से सुहागिनें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अपने अखंड सौभाग्य के लिए अन्न-जल त्यागकर करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं.
Karva Chauth: करवा चौथ से जुड़ी एक और किवदंती है द्रौपदी से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या के लिए गए थे और बाकी चारों पांडवों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. द्रौपदी ने यह परेशानी भगवान श्रीकृष्ण को बताई और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा का उपाय पूछा. भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी जिसके फलस्वरूप अर्जुन सकुशल वापस आए और बाकी पांडवों के सम्मान को भी कोई हानि नहीं हुई.
Karva Chauth: पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ व्रत 24 अक्टूबर रविवार को है। विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करेंगी। चांद को चलनी से देख पति का दर्शन कर उनके हाथों जल ग्रहण करेंगी। पत्नियां अपने पतियों के लिए आरोग्यता और दीघार्यु की कामना कर इस व्रत को रखती है। यह शास्त्र प्रमाणित नहीं है।
इस साल करवा चौथ (Karwa Chauth 2022) का व्रत 24 अक्टूबर को रखा जाएगा. मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था. इस व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी. तभी से महिलाओं के बीच इस व्रत को रखने की परंपरा शुरू हो गई. जानिए इस व्रत से जुड़ी तमाम जरूरी बातें.
Karva Chauth: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों के युद्ध हुआ. दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे. तब ब्रह्मा जी ने देवों को विजयी बनाने के लिए उनकी पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने का सुझााव दिया था. इसके बाद देवताओं की युद्ध में जीत हुई थी. माना जाता है कि जो भी महिला इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ रखती है, उसके पति के जीवन की तमाम समस्याएं टल जाती हैं और उसे दीर्घायु प्राप्त होती है. इसके अलावा वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती ह
करवा चौथ का व्रत सुहागिनें अपने पति की दीर्घ आयु हेतु रखती हैं और कुछ कन्याएं अपने लिए अच्छे जीवनसाथी को पाने की कामना हेतु। पति की लंबी उम्र हो जाए और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा भी करती हैं। महिलाएं चाहती हैं कि पत्नी से पहले उनके पति की मृत्यु कभी न हो। यह संपूर्ण भ्रांति मात्र है क्योंकि इस, लोक में अखंड केवल परमात्मा है। यहां पहले और बाद में किसकी मृत्यु होगी इसकी गणना तो की जा सकती है परंतु मृत्यु को केवल पूर्ण परमात्मा ही टाल सकता है।
मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत केवल एक ही उद्देश्य से रखा जाता है कि उनके व्रत रखने से उनके सुहाग (पति) की आयु दीर्घ हो जाए।
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: ।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ।।
अनुवाद: यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है अर्थात गीता के इस श्लोक से यह स्पष्ट हो गया कि गीता ज्ञान दाता अर्जुन से कह रहा है की व्रत रखना व्यर्थ है।
यह शरीर तो नश्वर है । यह सभी का नष्ट होगा केवल आत्मा-अमर है। आत्मा अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग शरीर धारण करती रहती है।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
Karva Chauth: इस श्लोक में प्रमाण है कि कोई भी सदा नहीं रहता। एक चक्र के अनुसार आत्मा विभिन्न योनियों में चक्कर काटती रहती है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी होगी। इस विषय में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये। अपितु जन्म मृत्यु के बंधन से छूटने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। जन्म और मृत्यु केवल पूर्ण परमात्मा के हाथ में है इसे तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी बढ़ा और घटा नहीं सकते। तैंतीस करोड़ देवी-देवता जिनमें ब्रह्मा-सावित्री, विष्णु- लक्ष्मी, शिव-पार्वती,काल ( विभिन्न रूपों में) , दुर्गा (अन्य रूपों में) तथा अन्य देवतागण केवल काल और दुर्गा की कठपुतली मात्र हैं। इन दोनों ने ही यहां सभी को गलत पूजा और पूर्ण परमात्मा के बारे में भ्रमित करके रखा हुआ है।
मनुष्य लोक दंत कथाओं और परंपराओं के मनमाने आचरण में इतना अधिक उलझ गया है कि वह सौ से अधिक बार बोले गए झूठ को अब सच मानने लगा है तथा झूठे, मनमाने और शास्त्र विरूद्ध पूजाओं के पाखण्ड और प्रपंच के चक्कर में मानव जीवन के मुख्य उद्देश्य को ही भूल गया है ।
किसी भी तरह का व्रत, पाखण्ड पूजा और शास्त्र विरूद्ध भक्ति साधना, दलदल में फंसे हुए व्यक्ति के उन कदमों की तरह है जो दलदल में कदम तो बढ़ाता रहता है और सोचता है कि मैं आगे बढ़ रहा हूं पर खड़ा वहीं का वहीं रहता है और अंत में दलदल की उसी जगह पर धंस कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
करवा चौथ की मनमानी कथा की यथार्थता को खंगालने पर यह ज्ञात हुआ कि ऐसी कोई कथा हमारे धार्मिक ग्रंथों जैसे कि पवित्र गीता जी और पवित्र पांचों वेदों में कहीं लिखी ही नहीं हुई है। करवा चौथ मनमानी पूजा और व्रत है।
इसे इस तरह से समझें कि एक पिता की पुत्री का विवाह हुआ। विवाह पश्चात पुत्री ने देखा-देखी वश अपने सुहाग की लंबी आयु की कामनावश पूरे दिन अन्न-जल का त्याग कर अपने ही पिता से पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की। पिता के लिए जितनी महत्वपूर्ण बेटी की आयु है उतनी ही पुत्र की आयु भी होती है।
अर्थात कहने का भाव यह है की शिव-पार्वती और चंद्रमा देवता को ईश और पूर्ण मानकर उनसे ऐसी प्रार्थना करना समाज की मूर्खतापूर्ण मानसिकता का परिचायक है। सच तो यह है कि पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक , नरक लोक और पाताल लोक के सभी प्राणी जीवन मृत्यु में हैं। केवल सतलोक ही अमर लोक है जहां जाने के बाद प्राणी कभी लौट कर जन्म मृत्यु में नहीं गिरता और सतलोक की कामना करने वाले शास्त्र विरूद्ध नहीं शास्त्र आधारित भक्ति मार्ग पर चलते हैं।
Karva Chauth: व्रत रखना मतलब भूखे -प्यासे रह कर अपनी ज़िद परमात्मा से मनवाने की कोशिश करना हम अज्ञानतावश शास्त्रविरुद्ध पूजाएं करते हैं। ऐसे हम सुखी कैसे हो सकते हैं? इसलिए हे भोले मानव ! तनिक विचार करो कि हम क्या कर रहे हैं और हमें करना क्या चाहिए था! हम पुरानी रीति रिवाजों को यदि अपनाते रहेंगे तो हम परमात्मा से मिलने वाले लाभ से वंचित रह जाएंगे।
इसका प्रमाण आप गरीबदास जी महाराज जी की वाणी में पढ़ सकते हैं-
गरीबदास जी महाराज जी अपनी वाणी में कहते हैं-
कहे जो करवा चौथ कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी, करे एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।।
आठे, साते करे कंदूरी, सो तो बने नीच घर सूरी।।
आन धर्म जो मन बसे, कोए करो नर नारी।।
गरीबदास जिंदा कहे, सो जासी नरक द्वार।।
Karva Chauth: गरीबदास जी महाराज जी समझाते हैं की शास्त्रानुकूल भक्ति को छोड़ कर यदि कोई अन्य पूजा करते हैं तो वह ठीक नहीं हैं और जो अन्य पूजाएं करता है वो नरक में जाएगा। वो चाहे पुरुष हो या स्त्री जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं और जो उन्हें कहानी सुनाती हैं काल उनकी चोटी पकड़ कर ले जाएगा और गधे की योनि में डालेगा। करवा चौथ रखने वाली स्त्री और कथा सुनाने वाले दोनों नरक के साथ गधे की योनि में जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि यह व्रत करना परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है।
जो कार्य परमात्मा के विधान के विरुद्ध हो वह यदि हम करते हैं तो सदा दुःखी रहते हैं। फिर न तो पति की आयु बढ़ती है और न ही हमारी इसलिए सद्भक्ति की तरफ कदम बढ़ाना ही हितकारी है । जो शास्त्रानुकूल यज्ञ -हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से ) नहीं करते हैं वे पापी और चोर प्राणी हैं । गीता अध्याय 3:12
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Karva Chauth: मानव जन्म केवल ईश्वर भक्ति व उनके नाम का सुमरण कर मोक्ष प्राप्त करने हेतु मिलता है। यह मानव जन्म बार बार नहीं मिलता है। परमात्मा दयालु हैं वह दया कर हमें यह मानव जन्म प्रदान करते हैं। हमें मानव जीवन के मुख्य कार्य को वेदों- पुराणों के अनुसार पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए । इसके बाद वह परमात्मा हमें अपने आप पूर्ण लाभ प्रदान करना आरंभ कर देते हैं।
शास्त्र आधारित पूजा करके हम परमात्मा से असंख्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। परंतु ध्यान रहे भक्ति का मूल उद्देश्य मोक्ष होना चाहिए न कि लाभ।
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Karva Chauth: परमात्मा सदभक्ति करने वाले भक्तों पर पूर्ण रूप से दया बनाए रखते हैं । परमात्मा की भक्ति व उनके मूल नामों का जाप-सुमिरन हमारे पापों का नाश कर हमें पवित्र करता है। हम व्रत या अन्य शास्त्रों के विरुद्ध पूजाएं कर पापों का नाश नहीं कर सकते हैं और न ही भूखे-प्यासे रहकर परमात्मा से कोई लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हमें समय रहते ऐसी पूजाएं त्याग देना चाहिए जो शास्त्रविरुद्ध हैं.
अन्य प्रमाण जिन्हें पढ़ कर शास्त्र आधारित सद्भक्ति से मिलने वाले सर्व लाभ जान सकते हैं:
प्रिय पाठकजन अपना समय बर्बाद न करें सद्भक्ति की तरफ बढ़ने से ही मानव जीवन सफल हो सकता है। तत्वज्ञान को जानने के लिए तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए। गीता अध्याय 4:34
परमात्मा कबीर साहिब जी महाराज जी अपनी अनमोल वाणी में अपनी आत्मा को समझाते हैं,
होले सुहागन सुरता तैयार ,मालिक घर जाना है।
तेरा सुन्न शिखर भरतार , मालिक घर जाना है।।
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