Ramayan Katha: रामायण रघुवंश के राजा राम की गाथा है। यह भगवान राम की समकालीन तथा आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। वाल्मीकि रामायण के बाद राम के जीवन पर रामचरितमानस दूसरी बड़ी महाकाव्य कविता है जिसे 16 वीं शताब्दी के भारतीय भक्ति कवि गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623) ने अवधी भाषा में लिखा है। रामचरितमानस शब्द का शाब्दिक अर्थ है “राम के कर्मों की झील”। वर्तमान में इसे हिंदी साहित्य की सबसे बड़ी कृतियों में से एक माना जाता है।
Ramayan Katha: रामायण महाकाव्य में कुल 24,000 श्लोक, 500 उपखंड तथा 7 काण्ड (अध्याय) है। इन सात काण्डो के नाम – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युदध्काण्ड) तथा उत्तरकाण्ड है। इनमें से सबसे बड़ा अध्याय बालकाण्ड तथा सबसे छोटा किष्किन्धाकाण्ड है।इसी प्रकार तुलसी जी कृत रामचरितमानस में भी सात कांड हैं, परंतु इसमें दोहे, चौपाइयां तथा छंद हैं और युद्ध कांड की जगह लंका कांड है। इसमें 9,388 चौपाइयां, 1,172 दोहे, 87 सोरठे, 47 श्लोक और 208 छंद हैं।
Ramayan Katha: राम जी भगवान विष्णु जी के सातवें अवतार माने जाते हैं। इसी प्रकार सीता, लक्ष्मी जी का अवतार थी। भगवान होने के बावजूद कर्म आधार पर विष्णु जी ने मनुष्य जन्म प्राप्त किया तथा करोड़ों कष्ट झेले। विष्णु जी जब राम रूप में मृतलोक में आए थे तो पूरा जीवन कष्टमय रहा।
भगवान होकर भी अपने प्रारब्ध के कर्म नहीं काट सके। इसी प्रकार सीता जी का जीवन भी बहुत कष्टमय था विवाह होते ही वनवास मिला ,फिर कुछ समय के बाद उन्हें रावण उठा कर ले गया (तमोगुण शिव का भक्त था) , सीता को बारह वर्ष तक न ठीक से आहार मिला और रावण की वासना से स्वयं को बचाती रहीं। इस लोक में तो स्वर्ग से आए भगवान भी सुरक्षित नहीं हैं।
Ramayan Katha: नारद जी के श्राप वश ही विष्णु जी को त्रेतायुग में राम बनकर जन्म लेना पड़ा और विवाह होते ही वनवास गमन हुआ। एक बार ऋषि नारद जी ने घोर तपस्या की और उन्हें घमंड हो गया कि उन्होंने विषय विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है। तपस्या पूरी करने के बाद वह अपने पिता भगवान ब्रह्मा से मिलने गए और उन्हें अपने उसी विश्वास से अवगत कराया।
भगवान ब्रह्मा ने नारद जी से भगवान विष्णु जी से इस बारे में चर्चा नहीं करने के लिए आग्रह किया। चूँकि नारद मुनी अति आत्मविश्वास और उत्साह में थे इसलिए उन्होंने अपने पिता द्वारा दी गई चेतावनी के बावजूद विष्णु जी के साथ वह बात साझा करने की सोची अर्थात पिता की बात नहीं मानी।
नारद मुनि अपने चाचा विष्णु जी से मिलने गए और शेखी बखारने लगे कि उन्होंने वासना पर विजय प्राप्त कर ली है और वे आजीवन तपस्वी का जीवन व्यतीत करेंगे। नारद मुनी के अभिमान और ग़लतफहमी को दूर करने के लिए विष्णु जी ने एक मायावी दुनिया रची जहाँ पर एक सुंदर राजकुमारी का ‘स्वयंवर’ आयोजित किया गया था और दूर-दूर के प्रसिद्ध शासक राजकुमारी से विवाह करने आए थे। ऐसा भव्य उत्सव और तैयारियों को देखकर नारद मुनी राजकुमारी से विवाह करने के लिए उत्साहित हो गए।
Ramayan Katha: भगवान विष्णु का रूप मनमोहक माना जाता है। नारद जी ने विष्णु जी को याद किया और उनसे उनका “हरि रूप” उन्हें प्रदान करने के लिए इच्छा ज़ाहिर की (संस्कृत में हरि का अर्थ बंदर होता है)। भगवान विष्णु ने चतुराई से ‘तथास्तु’ कहकर सहमति दी और नारद जी का चेहरा वानर की तरह परिवर्तित हो गया, जिससे नारद जी अंजान थे। ‘स्वयंवर’ का समय आ गया और राजकुमारी ने शाही दरबार में प्रवेश किया।
नारद जी कतार में खड़े थे और राजकुमारी की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह उन्हें माला पहनाए, वह पास आई, ऋषि नारद को देख कर भी अनदेखा कर आगे की ओर चली गई। नारद मुनी चौंक गए कि ‘राजकुमारी ने उनकी उपेक्षा क्यों की’ ? दूसरा मौका देते हुए, नारद मुनि एक और पंक्ति में आगे बढ़े, जहां राजकुमारी को अगले पल पहुँचना था। दूसरी बार भी राजकुमारी ने नारद जी को नज़रअंदाज़ कर दिया, तब उनके पास खड़े किसी व्यक्ति ने नारद जी के बंदर रूप का मज़ाक उड़ाया जिससे नारद मुनी नाराज़ हो गए ।
तब उग्र नारद मुनी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया, “तुम अपनी पत्नी के वियोग में एक पूरा मानव जीवन व्यतीत करोगे और मेरी ही भांति वियोग का दर्द झेलोगे और बंदर जैसे मुख वाले प्राणी तुम्हारी मदद करेंगे।’
श्री रामचंद्र जी की सौतेली माँ ‘कैकेयी’ ने अपने पति राजा दशरथ को आदेश दिया कि वह (Ramayan Katha) रामचंद्र जी को 14 वर्ष के लिए राजगद्दी का अपना अधिकार त्यागने और वनवास जाने का फरमान सुनाये। एक आदर्श पुत्र के रूप में रामचंद्र जी ने पूर्ण समर्पण के साथ अपने पिता के अनिच्छुक निर्णय को स्वीकार कर लिया और अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए अयोध्या छोड़ वन की ओर प्रस्थान किया। नारद मुनी का श्राप सत्य प्रतीत होने लगा। यह सब शैतान ब्रह्म-काल का जाल था।
Ramayan Katha:रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। वह तमोगुणी शिव जी का परम भक्त था। रावण को चारों वेदों का ज्ञान था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। वह मायावी के नाम से भी कुख्यात था क्योंंकि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और कई तरह के जादू जंतर करने में माहिर था।
ऋषि विश्वश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री इलाविदा से विवाह किया था जिनसे कुबेर का जन्म हुआ। विश्वश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकरण, विभीषण और सूर्पणखा पैदा हुई थी। कहते हैं कि रावण के छह भाई थे जिनके नाम ये हैं- कुबेर, विभीषण, कुम्भकरण, अहिरावण, खर और दूषण। खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर रावण के सगे भाई बहन नहीं थे।
(Ramayan Katha) शूर्पणखा लंका के राजा रावण की बहन और दानवों के राजा कालका के पुत्र की पत्नी थी। कई दानवों को मारकर समस्त संसार पर राज करने की इच्छा करने वाले रावण ने अपनी बहन के पति का भी वध कर दिया था। रावण ने उसे आश्वासन देते हुए भाई खर के पास रहने के लिए भेज दिया तभी भगवान राम, लक्ष्मण और सीता वनवास के लिए जंगलों में भटक रहे थे।
वहां राम को देखने के बाद शूर्पणखा उनपर मुग्ध हो गई। उसने अपना परिचय राम को इस तरह दिया कि मैं इस प्रदेश में स्वेच्छाचारिणी राक्षसी हूं। यहां मुझसे सब भयभीत रहते हैं। विश्रवा का पुत्र बलवान रावण मेरा भाई है। और मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं। राम (Ramayan Katha) ने उसे बताया कि उनका विवाह हो गया है लेकिन उनका छोटा भाई अविवाहित है तो वो उनके पास जाए
लक्ष्मण के पास जाकर भी शूर्पणखा ने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मना कर दिया और राम के पास वापस जाने के लिए कहा। दोनो भाइयों के इस नकारात्मक उत्तर से गुस्सा कर राक्षसी शूर्पणखा ने कहा कि वो अभी सीता को मार देगी तो राम विवाहित ही नहीं रहेंगे और वो सीता को मारने के लिए जैसी ही आगे बढ़ी, तभी लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी थी।
(Ramayan Katha) सीता के रूप और लावण्य का विस्तृत वर्णन सुनकर रावण के मन में कुटिल विचार आ गये. साथ ही साथ वह राम और लक्ष्मण की वीरता से भी प्रभावित हुआ और समझ गया कि इन दोनों के समीप रहते हुए, वह सीता का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. वह शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने से ज्यादा सीता के लिए लालायित था.
अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण रखने के लिए रावण अपने ‘पुष्पक विमान’ में बैठ कर राक्षस मारीच के पास गया. मारीच ने तप द्वारा कुछ ऐसी शक्तियाँ प्राप्त कर ली थी, जिससे वह कोई भी रूप धारण कर सकता था और इसी शक्ति के आधार पर वह पहले कुटिलतापूर्ण क्रियाकलाप करता था. परन्तु वह अब वृद्ध हो चुका था और अपनी शेष आयु के साथ ये सब बुरे काम छोड़कर ईश्वर भक्ति में लग गया था.
वह रावण की इस प्रकार की कुटिल चाल में शामिल नहीं होना चाहता था, परन्तु रावण ने उसे अपने राक्षसराज होने का रौब दिखाया और अपनी चाल में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया. वास्तव में मारीच इस कुकृत्य के लिए इसलिए तैयार हुआ, क्योंकि उसे पता था कि उसकी मृत्यु तो निश्चित हैं, क्योंकि अगर वो ये कार्य नहीं करता हैं, तो रावण उसे मार डालेगा और यदि करता हैं तो भगवान राम उसका वध कर देंगे, तो मारीच ने प्रभु श्री राम (Ramayan Katha) द्वारा मृत्यु का वरण करने का निश्चय कियारावण ने अपनी कुटिल बुद्धि से मारीच से कहा, कि वह एक स्वर्ण मृग [सुनहरा हिरण / Golden Deer] का रूप धारण करके सीता को लालायित करें.
तब मारीच ने सुनहरे हिरण का रूप धारण किया और माता सीता को लालायित करने के प्रयास करने लगा. माता सीता की दृष्टी जैसे ही उस स्वर्ण मृग पर पड़ी, उन्होंने भगवान राम (Ramayan Katha) से उस सुनहरे हिरण को प्राप्त करने की इच्छा जताई.
■ यह भी पढ़ें: हनुमान जयंती पर जानिए कौन थे हनुमान जी के गुरु?
(Ramayan Katha) रावण की एक बहन शूर्पनखा थी जो समुंद्र के उस पार दंडकारण्य के वनों में अपने भाई खर-दूषण के साथ रहती थी। एक दिन वह रावण के दरबार में आई व सभी के सामने प्रलाप करने लगी। श्रीराम (Ramayan Katha) व लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी जो उसकी बहन का अपमान था। भरे दरबार में स्वयं की बहन का यह अपमान वह भी किसी मनुष्य के द्वारा रावण को यह बात सहन नही हुई थी।
रावण एक दुष्ट चरित्र का प्राणी थी हालाँकि उसने वेदों व शास्त्रों का अध्ययन किया हुआ था लेकिन वह परायी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध पाने की इच्छा भी रखता था। जब शूर्पनखा ने रावण के सामने माता सीता के रूप का बखान किया तो रावण कामातुर हो उठा। शूर्पनखा ने सीता को सृष्टि की सबसे सुंदर नारी व रावण के लिए उपयुक्त स्त्री बताया जिसे सुनकर रावण गदगद हो उठा।
सीता के रूप का ऐसा बखान सुनकर रावण के मन में उसे पाने के लिए लालसा उमड़ पड़ी। इस कारण उसने श्रीराम व लक्ष्मण का वध कर सीता को अपनी पत्नी बनाने का सोचा। जब रावण ने श्रीराम (Ramayan Katha) व लक्ष्मण पर आक्रमण करके सीता को हरने का निश्चय कर लिया तब उसके मंत्रियों ने उसे परामर्श दिया कि दो तुच्छ मानवों पर आक्रमण करके उसे कुछ नही मिलेगा इसलिये वह छल से सीता का अपहरण कर ले जिससे राम उसके दुःख में ही अपने प्राण त्याग दे। यह प्रस्ताव रावण को पसंद आया व इससे वह सीता को आसानी से पा भी सकता था। इसलिये रावण ने अंत में सीता का छल से अपहरण करने का निश्चय किया।
यह सब कुछ नारद जी के श्रापवश हुआ था। सर्वशक्तिमान कबीर जी अपनी अमृत वाणी में बताते हैैं कि काल जीवों को गुमराह करता है। सीता का अपहरण ब्रह्म-काल का एक सुनियोजित षड्यंत्र था जिसमें श्री राम एक कमजोर और असहाय पति के रूप में उभर कर आते हैं और भाग्य के हाथों एक कठपुतली बन जाते हैं।
(Ramayan Katha) प्रभु श्री राम उस सुनहरे हिरण का पीछा करते हुए घने जंगल में जा पहुँचे थे और जब उन्हें लगा कि अब हिरण को पकड़ा जा सकता हैं, तो उन्होंने अपने धनुष से हिरण को निशाना बनाकर तीर छोड़ा, जैसे ही तीर मारीच को लगा, वह अपने वास्तविक रूप में आ गया और रावण की योजनानुसार भगवान राम की आवाज में दर्द से चीखने लगा -:
“लक्ष्मण, बचाओ लक्ष्मण…. सीता, सीता….” ;
इस कराहती हुई आवाज को सुनकर सीताजी ने लक्ष्मणजी से कहा कि
“तुम्हारे भैया किसी मुसीबत में फँस गये हैं और तुम्हें पुकार रहे हैं, अतः तुम जाओ और उनकी सहायता करो, उनकी रक्षा करो”.
ये सुनकर लक्ष्मणजी ने माता सीता को समझाया कि “भाभी, भैया राम पर कोई मुसीबत नहीं आयी हैं और ये किसी असुरी शक्ति का मायाजाल हैं, अतः आप व्यर्थ ही चिंतित न हो”.
ये सुनकर भी माता सीता ने लक्ष्मणजी की एक न सुनी और उन पर ही क्रोधित हो गयी और उन्हें आदेश दिया कि “हे लक्ष्मण, तुम जाओ और मेरे प्रभु को सकुशल ढूंढकर लाओ.” माता सीता के इस प्रकार के आदेश के कारण लक्ष्मणजी को अपने भैया राम के आदेश की अवहेलना करनी पड़ी और वे प्रभु श्री राम की खोज में जाने के लिए तैयार हो गये.
परन्तु लक्ष्मणजी अपने भैया राम के द्वारा दिए गये सीता माता की रक्षा करने के आदेश को पूर्ण करने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा और उस उपाय के अनुसार उन्होंने कुटिया के चारों ओर एक रेखा खींच दी, जिसके भीतर कोई नहीं आ सकता था. फिर उन्होंने माता सीता से निवेदन किया कि “भाभी, ये लक्ष्मण द्वारा खिंची गयी लक्ष्मण – रेखा हैं, इसके भीतर कोई नहीं आ सकता और जब तक आप इसके भीतर हैं,
आपको कोई हानि नहीं पहुंचा सकता, अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, जब तक मैं अथवा भैया राम वापस न लौट आये, तब तक आप इसके बाहर अपने चरण न रखें.” माता सीता इस बात के लिए सहमत हो गयी और कहा कि ठीक हैं, मैं इसके बाहर नहीं जाऊँगी, अब तुम प्रभु को ढूंढने जाओ. इस प्रकार के वार्तालाप के बाद लक्ष्मणजी भैया राम पुकारते हुए वन की ओर चले गये.
■ यह भी पढ़ें: पाराशर ऋषि ने अपनी पुत्री के साथ किया संभोग
(Ramayan Katha) रावण, जो कि इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था, कि राम और लक्ष्मणजी कुटिया से दूर जाये और वह अपने कार्य को पूर्ण कर सकें. वह माता सीता का हरण करने के लिए कुटिया के पास पहुँच गया, परन्तु जैसे ही उसने कुटिया में प्रवेश करना चाहा, लक्ष्मणजी द्वारा खिंची गयी लक्ष्मण रेखा के कारण वह भीतर प्रवेश नहीं कर पाया. अब उसे अपनी योजना विफल होती हुई दिखाई दी,
परन्तु फिर उसने सोचा कि वह भीतर नहीं जा सकता, परन्तु सीता तो बाहर आ सकती हैं और इस योजना को सफल करने के लिए उसने एक भिक्षुक का रूप धरा. भिक्षुक रूपी रावण ने माता सीता को कुटिया से बाहर बुलाने के लिए आवाज लगाई “भिक्षां देहि [भिक्षा दीजिये]”. माता सीता ने जब इस प्रकार की आवाजें सुनी तो वे कुटिया से बाहर आयी और भिक्षुक रूपी रावण को भिक्षा देने लगी, परन्तु वे अब भी कुटिया के भीतर ही थी और रावण उनका अपहरण नहीं कर सकता था,
तब रावण ने एक और स्वांग रचा. रावण, जो कि एक संन्यासी भिक्षुक के रूप में था, क्रोधित होने का नाटक करके कहने लगा कि “किसी संन्यासी को किसी बंधन में बंधकर भिक्षा नहीं दी जाती, आप इस कुटिया के बंधन से मुक्त होकर भिक्षा दे सकती हैं तो दे, अथवा मैं बिना भिक्षा लिए ही लौट जाऊंगा”.
रावण के इस कपट से अनजान माता सीता ने अत्यंत ही विनम्र भाव से कहा कि हे देव, मुझे आदेश हैं कि मैं इस कुटिया से बाहर न जाऊं, अतः आप कृपा करके यही से भिक्षा ग्रहण करें. परन्तु इस बात पर रावण कहाँ राजी होने वाला था. अतः उसने और भी क्रोधित होकर माता सीता से बाहर आकर भिक्षा देने को कहा और ऐसा न करने पर खाली हाथ लौट जाने को तैयार हो गया
तब माता सीता ने सोचा कि एक भिक्षुक संन्यासी का इस तरह खाली हाथ लौट कर जाना ठीक नहीं और एक क्षण की ही तो बात हैं, ऐसा सोचकर वे लक्ष्मण – रेखा से बाहर आकर भिक्षा देने को तैयार हो गयी. रावण मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ और जैसे ही माता सीता लक्ष्मण – रेखा से बाहर आयी, रावण बड़ी ही शीघ्रता से अपने असली रूप में आया और उसने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें बल पूर्वक खींचता हुआ अपने पुष्पक – विमान में बैठा कर लंका की ओर प्रस्थान कर गया
सीता माता ने लक्ष्मण रेखा पार करके मर्यादा का उल्लघंन किया था जिसकी वजह से रावण उनका अपहरण करने में सफल रहा।
(Ramayan Katha) राम जी सीता की खोज में पृथ्वी के कोने-कोने में भटक रहे थे श्री रामचंद्र उर्फ विष्णु जी यह नहीं पहचान सके कि सीता का अपहरण किसने किया? एक पक्षी जटायु ने श्री राम जी को बताया कि लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण किया है। जब मैंने बचाने की कोशिश की तो रावण ने मेरे पंख काट दिए।’ सीता को रावण की कैद से बचाने के लिए राम जी ने हनुमान जी तथा सुग्रीव की वानर सेना को सीता जी का पता लगाने के लिए कहा।
जटायु की मृत्यु के बाद भगवान राम (Ramayan Katha) के सभी सहयोगी माता सीता की तलाश में जुट गए. हनुमान, जांबवंत, अंगद, सुग्रीव आदि दक्षिण दिशा में माता की सीता खोच कर रहे थे, जहां इनकी मुलाकात जटायु के भाई संपाती से हुई. हनुमान जी ने संपाती को पूरी घटना की जानकारी दी और ये भी बताया कि किस तरह से उनके भाई जटायु को रावण ने मार दिया. यह खबर सुनकर संपाती को बहुत दुख हुआ और फिर संपाती ने अपनी नजरों को घुमाना आरंभ किया संपाती की नजरें बहुत तेज थीं और बहुत दूर तक का साफ साफ देखने की क्षमता रखती थीं.
संपती ने हनुमानजी और जांबवंत को बताया कि रावण माता सीता को लंका ले गया है. हनुमान जी ने यह समाचार तुरंत भगवान राम को दिया. इस प्रकार राम जी का आदेश मिलते ही हनुमान जी लंका के लिए निकल गए और वहां जा कर सीता जी से मिल कर उनकी निशानी के रूप में शादी की अंगूठी ले कर वापस आए।
गोविंदा के मैनेजर शशि सिन्हा ने बताया कि अभिनेता अपनी रिवॉल्वर को केस में रख…
Indian Army Day in Hindi: 15 जनवरी का दिन भारत के लिए अहम दिन होता…
National Youth Day: राष्ट्रीय युवा दिवस (स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस) National Youth Day: हर वर्ष…
Gadi Ke Number Se Malik Ka Name गाड़ी नंबर से मालिक यहां से घर बैठे…
Kabir Saheb Nirvan Divas: कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस: यह परमात्मा की ही दया है कि…
Makar Sankranti Hindi: हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति त्योहार का बहुत ही ज्यादा महत्व है. इस…
This website uses cookies.