एक लख पूत सवा लाख नाती ता रावण घर दिया ना बाती
दशहरा यादगार है या त्यौहार ,रावण दुर्गति को प्राप्त हुआ या सदंगति को
Dussehra 2022: ऋषि विश्रवा व माता कैकसी के पुत्र रावण को बच्चा बच्चा उतना ही जानता है जितना किस्से कहानियों व रामलीला के मंचन व सीरियलों द्वारा अवगत करा दिया गया है। रावण मूलतः गौतम बुद्ध नगर जिले के विसरख गांव का रहने वाला था। विसरख, प्राचीन काल में विश्वेशरा नाम से जाना जाता था कालान्तर में अपभ्रन्श होकर विसरख हो गया।। विसरख मूल रूप से ग्रेटर नोएडा दिल्ली एन सी आर क्षेत्र में स्थित है। विसरख में रावण की पूजा की जाती है। यहां पर रावण का मन्दिर भी है।
कैकसी राक्षस पुत्री थी व विश्रवा ब्राह्मण पुत्र थे। रावण में दोनों के संस्कार स्पष्ट देखने को मिलते हैं। रावण की पूजा विसरख के अतिरिक्त कतिपय अन्य स्थानों पर भी की जाती है । कहीं कहीं विद्वता के कारण पूजा तो जाता है पर बाद में राक्षस प्रवृत्ति के कारण जलाया भी जाता है। दक्षिण भारत के रामेश्वरम प्रभावित क्षेत्रों में रावण की विशेष पूजा अर्चना होती है।
Dussehra: रावण की ससुराल
रावण की ससुराल का स्थान उलझा हुआ है । इतिहासकार नौनिहाल का जिक्र करना बिल्कूल ही भूल गये । राजस्थान के जोधपुर को कुछ लोग रावण की ससुराल मानते है। जोधपुर में रावण का विशालकाय मन्दिर भी है। मध्यप्रदेश के मन्दसौर में भी रावण की ससुराल मानी जाती है यहां पर भी लंकाधिपति रावण का मन्दिर है। माना जाता है कि मन्दोदरी के नाम पर ही जिले का नाम मन्दसौर है।
Dussehra: रावण की ननिहाल के बारे में बदायूं जिले में स्थित उसावां प्राचीन नाम उष्णापुरी को रावण की ननिहाल यहां के निवासियों द्वारा बताया जाता रहा है। बचपन में एक बार रावण विसरख से अपनी ननिहाल जा रहा था रास्ते में उसे सहस्रबाहु ने पीटा । सहस्रबाहु के किले वाली जगह अब सहसवान नाम से प्रसिद्धि है । सहसवान भी बदायूं जनपद में स्थित है।
उसावां से एक किलोमीटर की दूरी पर शाहजहांपुर जिले में पटनादेवकली में शुक्राचार्य की तपोस्थली स्थित है। जो शुक्राचार्य की समस्त गतिविधियों का प्रधान केन्द्र थी। बताते है शुक्राचार्य जाट बाहुल्य क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मूल निवासी था। बनारस से शिक्षा अर्जित करने के बाद गृह वापसी के वक्त इसी स्थान पर रुक गया व घोर तपस्या कर सिद्धियां अर्जित कर ली। शुक्राचार्य के अन्य अस्थायी ठिकाने यत्र तत्र सर्वत्र मिलते है।
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उपरोक्त प्रकरण के जिक्र के पीछे कारण यह है कि अनुवादकर्ता ,लेखक ,इतिहासकार , कवि किस प्रकार की काटछांट कर व कुछ अपनी तरफ से जोड़कर ज्ञान को उलझा देते हैं , जिसके फलस्वरूप सच्चाई को समझ पाना मुश्किल हो आता है। रावण से सम्बन्धित सभी साक्ष्य रामेश्वर स्थित संग्रहालयों मे मौजूद है।
इन इतिहासकारों ने कभी भी वहां जाकर साक्ष्य खगालने की कोशिश नहीं की जो मन में आया , वह लिख दिया। इसी प्रकार के अज्ञानियों ने कबीर साहेब के सम्बन्ध में तमाम उलझने पैदा कर परमात्मा को परमात्मा कह पाना बहूत मुश्किल बना दिया।
Dussehra: तुलसीकृत रामायण अपूर्ण
Dussehra: तुलसीकृत रामायण अपूर्ण होकर भी समाज में ऐसा भ्रम है कि तुलसीकृत रामायण पूर्ण है। महाभारत में 110000 श्लोक हैं।पर गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत में मात्र 80000 से कुछ अधिक श्लोक बचे है।
मौसल पर्व ,महाप्रस्थानिक पर्व, स्वर्गारोहण पर्व को देखने से पता लगता है कि इन पर्वों में विशेष काटछांट है । महाभारत के कुछ श्लोक अनुवाद कर्ताओ के समझ नहीं आये। उनके यह समझ नहीं आया कि श्रीकृष्ण कैसे कह सकते है कि गीता उन्होने नहीं बोली। इस कारण से भी महाभारत जैसे ग्रन्थ में भयंकर काटछांट है फिर भी बहुत प्रयत्न करने पर मूल ज्ञान नहीं छुपा पाये।
रावण को पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपभ्रन्श नाम कविरदेव, कबिरदेव कबीर देव कबीर साहेब अकबर किब्रू आदि ) मिले थे। । त्रेता युग में पूर्ण परमात्मा कविर्देव मुनिन्द्र नाम से प्रकट हुये थे। मुनिन्द्र नाम से विवरण तुलसीकृत रामायण में नहीं है। पर अन्य रामायणों में मुनिन्द्र का विवरण मिलता है। रामायण 52 प्रकार की है। लोग प्रायः बाल्मीक रामायण व तुलसी कृत रामायण के परिचय तक सीमित है।
परमात्मा अन्य युगों में अपने ऋतधाम जिसे संतो की भाषा में सतलोक कहा जाता है, से इस गन्दे लोक पृथ्वी लोक पर प्रकट होते है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक की दिखावटी आयु की लीला करके अपने ज्ञान का प्रचार करते है , इस तरह वह अपने दृढ़ एवं जिज्ञासु भगतों को अपने निज घर सतलोक भेजने का व्यापार करते है।
मन्दोदरी को परमात्मा कविरदेव मिले थे।
समझाने पर मन्दोदरी ने परमात्मा कविरदेव से नाम ले लिया था। मंदोदरी परमात्मा मुनिन्द्र की शक्ति को पहचानती थी। वह जान गयी थी सतगुरु रूप में आया उसका नुमाइन्दा या खुद सतगुरु रूप में परमात्मा ही पूर्ण ब्रह्म कविर्देव के पहले से बने विधान में नये लेख लिख सकते है।रावण यदि नाम ले लेगा तो रावण की निश्चित मृत्यु कांटे में टल जायेगी।
सदगुरू शरणे आने से आई टलै बला।
जो मस्तिष्क में शूली हो कांटे में टल जा।।
Dussehra: भक्तमति मंदोदरी के बार-बार प्रार्थना करने से भी रावण ने माता सीता जी को वापिस छोड़ कर आना स्वीकार नहीं किया। तब भक्तमति मंदोदरी जी ने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी से कहा महाराज जी, मेरे पति ने किसी की औरत का अपहरण कर लिया है। मुझ से सहन नहीं हो रहा है। वह उसे वापिस छोड़ कर आना किसी कीमत पर भी स्वीकार नहीं कर रहा है। आप दया करो मेरे प्रभु।
आज तक जीवन में मैंने ऐसा दुःख नहीं देखा था। परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने कहा कि बेटी मंदोदरी यह औरत कोई साधारण स्त्री नहीं है। श्री विष्णु जी को शापवश पृथ्वी पर आना पड़ा है, वे अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचन्द्र नाम से जन्में हैं। इनको 14 वर्ष का वनवास प्राप्त है तथा लक्ष्मी जी स्वयं सीता रूप में इनकी पत्नी रूप में वनवास में श्री राम के साथ थी। उसे रावण एक साधु वेश बना कर धोखा देकर उठा लाया है। यह स्वयं लक्ष्मी ही सीता जी है। इसे शीघ्र वापिस करके क्षमा याचना करके अपने जीवन की भिक्षा याचना रावण करें तो इसी में इसका शुभ है।
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भक्तमति मंदोदरी के अनेकों बार प्रार्थना करने से रावण नहीं माना
तथा कहा कि वे दो मस्करे जंगल में घुमने वाले मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। मेरे पास अनगिन सेना है। मेरे एक लाख पुत्र तथा सवा लाख नाती हैं। मेरे पुत्र मेघनाद ने स्वर्ग राज इन्द्र को पराजित कर उसकी पुत्री से विवाह कर रखा है। तेतीस करोड़ देवताओं को हमने कैद कर रखा है। तू मुझे उन दो बेसहारा बन में बिचर रहे बनवासियों को भगवान बता कर डराना चाहती है। इस स्त्री को वापिस नहीं करूंगा।
मंदोदरी ने भक्ति मार्ग का ज्ञान जो अपने पूज्य गुरुदेव से सुना था, रावण को बहुत समझाया। विभीषण ने भी अपने बड़े भाई को समझाया। रावण ने अपने भाई विभीषण को पीटा तथा कहा कि तू ज्यादा श्री रामचन्द्र का पक्षपात कर रहा है, उसी के पास चला जा। एक दिन भक्तमति मंदोदरी ने अपने पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना की कि हे गुरुदेव मेरा सुहाग उजड़ रहा है। एक बार आप भी मेरे पति को समझा दो। यदि वह आप की बात को नहीं मानेगा तो मुझे विधवा होने का दुःख नहीं होगा।
Dussehra: अपनी बचन की बेटी मंदोदरी की प्रार्थना स्वीकार करके राजा रावण के दरबार के समक्ष खड़े होकर परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने द्वारपालों से राजा रावण से मिलने की प्रार्थना की। द्वारपालों ने कहा ऋषि जी इस समय हमारे राजा जी अपना दरबार लगाए हुए हैं। इस समय अन्दर का संदेश बाहर आ सकता है, बाहर का संदेश अन्दर नहीं जा सकता। हम विवश हैं। तब पूर्ण प्रभु अंतर्ध्यान हुए तथा राजा रावण के दरबार में प्रकट हो गए।
रावण की दृष्टि ऋषि पर गई तो गरज कर पूछा कि इस ऋषि को मेरी आज्ञा बिना किसने अन्दर आने दिया है उन द्वारपालों को लाकर मेरे सामने कत्ल कर दो। तब परमेश्वर ने कहा राजन् आप के द्वारपालों ने स्पष्ट मना किया था। उन्हें पता नहीं कि मैं कैसे अन्दर आ गया। रावण ने पूछा कि तू अन्दर कैसे आया? तब पूर्ण प्रभु मुनिन्द्र वेश में अदृश होकर पुनर् प्रकट हो गए तथा कहा कि मैं ऐसे आ गया।
रावण ने पूछा कि आने का कारण बताओ। तब प्रभु ने कहा कि आप योद्धा हो कर एक अबला का अपहरण कर लाए हो। यह आप की शान व शूरवीरता के विपरीत है। सीता कोई साधारण औरत नहीं है यह स्वयं लक्ष्मी जी का अवतार है। श्री रामचन्द्र जी जो इसके पति हैं वे स्वयं विष्णु हैं।
इसे वापिस करके अपने जीवन की भिक्षा मांगो। इसी में आप का श्रेय है। इतना सुन कर तमोगुण (भगवान शिव) का उपासक रावण क्रोधित होकर नंगी तलवार लेकर सिंहासन से दहाड़ता हुआ कूदा तथा उस नादान प्राणी ने तलवार के अंधा धुंध सत्तर वार ऋषि जी को मारने के लिए किए। परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने एक झाडू की सींक हाथ में पकड़ी हुई थी।
उसको ढाल की तरह आगे कर दिया। रावण के सत्तर वार उस नाजुक सींक पर लगे। ऐसे आवाज हुई जैसे लोहे के खम्बे (पीलर) पर तलवार लग रही हो। सिंक टस से मस नहीं हुई। रावण को पसीने आ गए। फिर भी अपने अहंकारवश नहीं माना। यह तो जान लिया कि यह कोई साधारण ऋषि नहीं है। रावण ने अभिमान वश कहा कि मैंने आप की एक भी बात नहीं सुननी, आप जा सकते हैं। परमेश्वर अंतर्ध्यान हो गए तथा मंदोदरी को सर्व वृतान्त सुनाकर प्रस्थान किया। रानी मंदोदरी ने कहा गुरुदेव अब मुझे विधवा होने में कोई कष्ट नहीं होगा।
दशहरा एक यादगार तो हो सकता है त्योहार कदापि नहीं।
लोकवेद कहता है कि रावण राम के हाथों मारा गया इसलिये उसकी सदगति हो गयी। एक बार को मान भी लेते है कि उसकी सदंगति हो गयी ,पर उसे अपने पाप कर्म लोकवेद की थ्योरी के हिसाब से भी, बाद में नरक में भोगने पड़ेगे। सदगति उसे कहते है हमारा आवागमन का चक्र सदा सदा के लिये समाप्त हो जाये। रावण स्वर्ग नरक भोगने के बाद चौरासी में जायेगा।
इसलिये राम के हाथों मारे गये रावण की गति को सदगति कहना गलत होगा। पाप कर्म विनाश की शक्ति पूर्ण परमात्मा कविरदेव या उनके नुमाइन्दे के अतिरिक्त किसी के पास होती नहीं है। सम्पूर्ण अध्यात्म से परिचित होने के बाद पता चलेगा कि हमारे त्रिलोकी भगवान आयु पूरी होने पर जन्मते व मरते है। पूर्ण सन्त की शरण ना मिलने से हरहट जैसे कुयें की स्थिति जीव क्या इन भगवानों तक की बनी रहती है।
या हरहट का कुछ लोई या गल बंध्या है सब कोई
कीड़ी कुन्जर और औतारा हरहट डोर बंधे कई बारा
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