Guru Nanak Jayanti: आज गुरु नानक जयंती है, आज हम कुछ ऐसे बच्चों से पर्दा उठाएंगे, जो अभी तक रहस्य बने हुए थे। भारत हमेशा से ही संतो, ऋषि और मुनियों की भूमि रही है। भारत के इतिहास का मध्यकाल जिसमें भक्ति काल का हिस्सा भी आता है। इसी कारण से स्वर्ण युग कहा जाता है, क्योंकि यह काल भक्ति की लहर से ओतप्रोत था। यहां उन्ही संतो के में से एक नानक जी की जीवनी के बारे में आज हम चर्चा करेंगे। कुछ ऐसे तथ्य से परिचित कराएंगे जो अब तक रहस्य बने हुए हैं। नानक जयंती एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। श्री नानक देव जी सिख धर्म के प्रवर्तक रहे इन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की। गुरु नानक जयंती को गुरूपर्व भी कहा जाता है। नानक देव जी के जन्मदिन को गुरु नानक जयंती गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जी ने सद्भक्ति की और सतलोक प्राप्त किया। जानेंगे कि कौन थे उनके गुरु?
गुरु नानक देव जी का जन्म विक्रमी संवत 1526 (सन् 1469) को कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालू राम मेहता के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी से पश्चिमी पाकिस्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गांव में हुआ। यह हिस्सा अविभाजित भारत का हिस्सा था। इसे ननकाना साहिब नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है। श्री गुरू नानक देव को फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा का ज्ञान था। प्रत्येक वर्ष गुरुनानक जी का जन्मदिवस गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष दिन सोमवार तारीख 19 नवम्बर 2021 गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) (गुरुपर्व) के दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।-
Guru Nanak Jayanti गुरू नानक देव जी की जयंती (Guru Nanak Jayanti) को सिख धर्म के लोग गुरुपर्व के रूप में मनाते हैं। इस साल 19 नवम्बर 2021 को श्री गुरु नानक देव जी का 552वाँ (1469 – 2021) प्रकाश गुरुपर्व है।
नाम (Name ) | नानक |
सिख धर्म में नाम (Sikh Religions Name ) | गुरु नानक देव |
निक नेम (Nick Name ) | बाबा नानक |
प्रसिद्द (Famous for ) | सिख धर्म के संस्थापक |
जन्म तारीख (Date of birth) | 15 अप्रैल 1469 |
जन्म स्थान (Place of born ) | तलवण्डी गाँव , लाहौर ,पाकिस्तान |
गृहनगर (Hometown ) | तलवण्डी गाँव , लाहौर ,पाकिस्तान |
मृत्यु तिथि (Date of Death ) | 22 सितंबर 1539 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | करतारपुर , पाकिस्तान |
स्मारक समाधि (Memorial tomb) | करतारपुर , पाकिस्तान |
उम्र( Age) | 70 वर्ष (मृत्यु के समय ) |
कार्यकाल (Guruship) | साल 1499–साल 1539 तक |
धर्म (Religion) | सिख |
जाति (Caste ) | खत्रीकुल |
नागरिकता(Nationality) | सिख |
गुरु (Guru) | कबीर साहिब जी |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | शादीशुदा |
नानक जी की परमात्मा में गहन आस्था थी किन्तु वे सच्चे भगवान की भक्ति नहीं कर रहे थे। पूर्व जन्म में नानक जी सतयुग में राजा अम्बरीष थे जो विष्णु जी के उपासक थे। त्रेता युग में यही आत्मा राजा जनक बने, जो सीता जी के पिता हुए। राजा जनक जी भी विष्णु जी के उपासक हुए। उस समय सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे वे राजा जनक के शिष्य बनने आये थे। पूर्व जन्मों में गुरु नानक देव जी राजा थे। उनके सैकड़ों, हजारों नौकर हुआ करते थे। किन्तु अपने पुण्य स्वर्ग आदि में भोगने के कारण पुनः साधारण मनुष्य के जीवन में आये और मोदीखाने में नौकरी करने लगे।
उन दिनों नानक जी अपनी बहन नानकी के घर सुल्तानपुर में रहते थे और मोदीखाने में नौकरी करते थे। वे नियमानुसार बेई नदी में स्नान करने जाते थे और घण्टों प्रभु चिंतन में बैठे रहते थे। ऐसी ही एक सुबह वे बेई नदी में स्नान करने गए और वहीं उन्हें परमेश्वर कविर्देव जिंदा पीर के रूप में मिले। सबसे पहले वार्ता में जिंदा पीर के रूप में परमेश्वर मिले। उन्होंने नानक जी से ज्ञानचर्चा की और उन्हें प्रमाण देकर बताया कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी जन्म मरण के चक्र में हैं एवं विष्णु जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
जिंदा बाबा के रूप में परमेश्वर कबीर ने उन्हें गीता के श्लोकों का भी ज्ञान करवाया। गीता और वेदों के श्लोको से समझाया किन्तु नानक जी तत्वज्ञान स्वीकारने में अरुचि करने लगे क्योंकि उन्होंने ऐसा ज्ञान पहले कभी नहीं सुना था। अतः उस ज्ञान का खंडन तो नहीं कर सके किन्तु अपनी अरुचि ज़ाहिर कर दी। नानक जी ने कबीर साहेब से कहा कि वे नानक जी को अपना गुरु बना लें।
Guru Nanak Jayanti: जिंदा पीर के रूप में कबीर साहेब ने नानक जी को सर्व सृष्टि की रचना बताई और ब्रह्मा, विष्णु, महेश की स्थिति से परिचित करवाया और फिर उन्हें कुरान आदि ग्रन्थों में कबीर साहेब के परमेश्वर रूप का आभास करवाया। नानक जी की रुचि नहीं बनी और उनकी अरुचि देखकर कबीर परमेश्वर वहाँ से चले गए। आस पास के लोगों ने उनसे पूछा कि वह भक्त कौन था जो आपसे ज्ञान चर्चा कर रहा था? नानक जी ने कहा वह काशी का कोई नीच जुलाहा था वह बेतुकी बातें कर रहा था और कह रहा था कि मैं गलत साधना कर रहा हूँ। जब मैंने बताना शुरू किया तो हार मानकर चला गया।
(सिखों ने इस वार्ता से नानक जी को कबीर साहेब का गुरु मान लिया, जो कि असत्य है।)
Guru Nanak Jayanti: नानक जी को इतनी वार्ता के पश्चात इतना ज्ञान अवश्य हो गया था कि वे सत्य साधना नहीं कर रहे हैं और कहीं न कहीं कोई भूल हो रही है और गीता का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न है जो अब तक बताया गया था। वे हृदय से प्रार्थना करते थे कि उसी सन्त के एक बार और दर्शन हो जाएँ जिससे कुछ प्रश्नों के उत्तर अवश्य प्राप्त हो जाएं।
Guru Nanak Jayanti: कुछ समय पश्चात जिंदा पीर रूप में कबीर साहेब फिर मिले इस बार वे केवल नानक जी को दिखाई दे रहे थे। परमात्मा कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करें। पूर्ण परमेश्वर की राजधानी तो सतलोक है। नानक जी ने कहा कि मैं आपकी परीक्षा लेना चाहता हूँ, मैं इस दरिया में छिप जाऊंगा और आप मुझे ढूंढना। ऐसा कह नानक जी ने डुबकी लगाई और मछली का रूप धारण कर लिया। परमेश्वर कबीर जी ने मछली रूप में नानक जी को पकड़ा और उसे नानक जी के रूप में बना दिया।
Guru Nanak Jayanti: इस पर नानक जी करबद्ध होकर बोले कि परमेश्वर मैं मछली बन गया था आपने मुझे कैसे खोज लिया आप तो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म को जानने वाले हो। नानक जी कबीर परमेश्वर से वार्ता सुनने के लिए तैयार हो गए। तब कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में उन्हें सतलोक लेकर गए और उन्हें सारी सृष्टि की स्थिति से परिचित करवाया।
सचखंड ले जाने में और वहाँ वास्तविक स्थिति से परिचय करवाने में तीन दिन लग गए और तीन दिन पश्चात कबीर साहेब ने नानक जी की आत्मा को वापस शरीर में छोड़ दिया। तब तक यहां पृथ्वी पर सभी नानक जी को न पाकर मृत मान चुके थे।
■ यह भी पढ़ें: क्या है तुलसी शालिग्राम पूजा की सच्चाई तथा क्या है शास्त्रानुकूल साधना?
सचखंड में कबीर साहेब ने कहा कि वे काशी में धाणक रूप में विद्यमान हैं उनसे सत्यनाम लेकर सत्यसाधना करने से कल्याण होगा। तब नानक जी सतनाम सतनाम करते हुए बनारस काशी पूर्ण परमात्मा की तलाश में चल पड़े। सिख भाई सतनाम सतनाम का जाप करते हैं जबकि गुरुग्रन्थ साहेब में स्पष्ट लिखा है कि सत्यनाम तो अन्य ही मन्त्र है।
Guru Nanak Jayanti: नानक जी उस पूर्ण संत को खोजने निकले तथा बनारस गए और परमेश्वर कबीर साहेब से मिले तो देखकर सोचा यह तो वही मोहिनी सूरत है जिनके सतलोक में दर्शन हुए थे। नानक जी की खुशी का ठिकाना न रहा एवं प्रसन्नता से उनकी आंखों में अश्रु भर गए। कबीर साहेब के चरणों मे गिरकर नानक जी ने सत्यनाम प्राप्त किया और अपना कल्याण करवाया। गुरु नानक देव जी पूर्ण परमेश्वर की साधना करते थे। श्री नानकदेव जी पहले एक ओंकार (ॐ) मन्त्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक (सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब श्री नानक साहेब जी की काल लोक से मुक्ति हुई।
इसी का प्रमाण पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर
एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल।
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
अर्थात मन रूपी कुत्ता और उसके साथ दो आशा व तृष्णा रूपी कुतिया भौंकती रहती है तथा नित नई नई आशाएं उत्त्पन्न होती रहती हैं। इसे मारना केवल सत्यसाधना से ही सम्भव था जिसका कबीर साहेब से ज्ञान प्राप्त करके समाधान हुआ। नानक जी ने आगे कहा कि उस सत्य साधना के बिना न तो साख थी और न ही सही भक्ति कमाई थी। नानक जी कबीर परमात्मा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हारा एक नाम मन्त्र इस संसार से मुक्ति दिलाएगा मेरे पास केवल तेरा ही नाम और तू ही आधार है अन्य कुछ भी नहीं। पहले अनजाने में निंदा भी की होगी क्योंकि बहुत काम क्रोध इस चंडाल रूपी तन में रहते हैं। नानक जी कहते हैं कि मुझे धाणक रुपी परमात्मा ने आकर तार दिया और काल से छुटाया।
इस सुंदर परमात्मा की मोहिनी सूरत को कोई नहीं पहचान सकता। परमात्मा ने तो काल को भी ठग लिया है जो दिखता तो धाणक है और ज़िंदा महात्मा बन जाता है। आम व्यक्ति इसे नहीं पहचान सकता इसलिए प्रेम से नानक जी ने परमात्मा को ठगवाड़ा कहा है। नानक जी जीव को अपनी भूल बताते हुए कहते हैं कि मैंने परमात्मा से वाद विवाद किया फिर भी परमात्मा ने एक सेवक रूप में मुझे दर्शन दिए और स्वामी नाम से सम्बोधित किया। नानक जी क्षमाप्रार्थी होकर पश्चाताप करते हुए कहते हैं कि मुझ जैसा नीच और हरामखोर कौन होगा। नानक जी कहते हैं कि मैं भली तरह सोच विचार कर कहता हूं कि परमात्मा यही धाणक रूप है।
■ यह भी पढ़ें छठ पूजा क्या है? आओ जाने छठ पूजा का वास्तविक ज्ञान।
जब नानक जी बनारस में कबीर परमेश्वर से मिले तब नानक जी प्रसन्नता से भर गए क्योंकि जिस मोहिनी सूरत को नानक जी ने सचखंड में देखा था वही मोहिनी सूरत में कबीर परमेश्वर जुलाहे रूप में उनके सामने थे और यह देखकर उन्होंने कहा था
“खरा सिआंणा बहुता भार, ये धाणक रूप रहा करतार”
नानक जी के गुरु परमात्मा कबीर साहेब थे। गुरु ग्रन्थ साहेब में कई स्थानों पर धाणक रूपी कबीर परमेश्वर की महिमा गाई गई है। गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीय ग्रन्थ है और इसी तरह कबीर सागर भी एक परम् आदरणीय ग्रन्थ है। कबीर सागर में स्पष्ट प्रमाण है कि कबीर साहेब ने जिंदा पीर के रूप में गुरु नानक जी को दर्शन दिए थे। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों की मान्यता है नानक जी का कोई गुरु नहीं था किंतु इस बात का कई स्थानों पर प्रमाण है कि उनका भी कोई गुरु था।
“साखी रुकनदीन काजी के साथ होई” में पृष्ठ 183 में निम्न वाणी दी है।
नानके आखे रुकनदीन सच्चा सुणहू जवाब |
खालक आदम सिरजिया आलम बड़ा कबीर ||
कायम दायम कुदरती सिर पीरां दे पीर |
सजदे करे खुदाई नू आलम बड़ा कबीर |।
इस गुरुनानक जंयती सुधारें अपना जन्म, लें तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा और जानें सत्यनाम का असली मन्त्र। सत्यनाम तो एक विशेष मन्त्र है जो केवल पूर्ण गुरु से नामदीक्षा लेने से ही सफल होता है। क्या आप जानते हैं उस तत्वदर्शी सन्त के विषय में पहले ही भविष्यवाणी की जा चुकी है। वर्तमान में वह मौजूद है। अपना अनमोल मानव जन्म व्यर्थ न गंवाते हुए तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लें।
Guru Nanak Jayanti: यदि कोई यह सोचे कि दस गुरु साहिबानो में से भी किसी की ओर संकेत हो सकता हैं। इससे स्मरण रहे कि दस सिख गुरू साहिबानों में से कोई भी जाट वर्ण से नहीं थे। दूसरे सिख गुरू श्री अंगद देव जी खत्री थे। तीसरे गुरु जी श्री अमर दास जी भी खत्री थे। चौथे गुरु जी श्री रामदास जी भी खत्री थे तथा पांचवे गुरु जी श्री अर्जुन देव जी से लेकर दसवें तथा अंतिम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक श्री गुरु रामदास जी की संतान अर्थात खत्री थे।
भाई बाले वाली जन्म साखी में लिखा गया विवरण स्पष्ट करता कि सन्त रामपाल जी महाराज ही वे अवतार है जिन्हें परमेश्वर कबीर जी तथा गुरु नानक देव जी के पश्चात पंजाब की धरती पर अवतरित होना था। संत रामपाल जी महाराज 8 सितंबर सन 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा प्रांत (तत्कालीन पंजाब) में अवतरित हुए। सन्त रामपाल जी महाराज का प्रचार क्षेत्र बरवाला रहा है जिसका ज़िक्र जन्मसाखी में किया है। सन्त रामपाल जी महाराज वही अवतार हैं जो अन्य प्रमाणों के साथ-साथ जन्म साखी में लिखें वर्णन पर खरे उतरते हैं। इसके अलावा भी अन्य विभिन्न देशों के भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियां हैं जो पर सन्त रामपाल की महाराज पर सही उतरती हैं। अधिक जानकारी के लिए जरूर सुने सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग।
गोविंदा के मैनेजर शशि सिन्हा ने बताया कि अभिनेता अपनी रिवॉल्वर को केस में रख…
Indian Army Day in Hindi: 15 जनवरी का दिन भारत के लिए अहम दिन होता…
National Youth Day: राष्ट्रीय युवा दिवस (स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस) National Youth Day: हर वर्ष…
Gadi Ke Number Se Malik Ka Name गाड़ी नंबर से मालिक यहां से घर बैठे…
Kabir Saheb Nirvan Divas: कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस: यह परमात्मा की ही दया है कि…
Makar Sankranti Hindi: हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति त्योहार का बहुत ही ज्यादा महत्व है. इस…
This website uses cookies.