Updated 27 dec | 3:40 pm
Kamakhya Temple Mystery: 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा।
वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। यह सब माना जाता है। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं …
Kamakhya Temple Mystery: हिंदु धर्म में अगर महिला को पीरिएड्स होते हैं तो वो कोई भी शुभ या धर्म का काम नहीं कर सकती. लेकिन असम में एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर पीरिएड के समय में भी महिलाएं मंदिर के अंदर जा सकती हैं. इस मंदिर का नाम है कामाख्या शक्तिपीठ है. ये वो मंदिर है, जहां पर देवी की माहवारी के समय पूजा की जाती है. यानी महिलाएं यहां अपने मासिक के दिनों में जा सकती हैं.
kamakhya Temple Mystery: मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जो कि आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है। यह पूजा शास्त्र विरुद्ध है।
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हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। कहा जाता हे कि पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
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Kamakhya Temple Mystery: कामाख्या मंदिर भारत में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और स्वाभाविक रूप से, सदियों का इतिहास इसके साथ जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था. भारतीय इतिहास के मुताबिक, 16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था। फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नर नारायण सिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण करवा या गया।
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किमी दूर है. ये शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। जहां न केवल देश के लोग बल्कि अलग-अलग देशों से भी इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं. ये मंदिर हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख स्थल है।
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Kamakhya Temple Mystery: कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है। उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं. यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में टापू पर स्थित है. इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदा शिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि जाग्रत होने पर शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उन्हें भस्म किया था. भगवती के महातीर्थ नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुनः जीवनदान मिला था, इसलिए ये इलाका कामरूप के नाम से भी जाना जाता है.
1. मनोकामना पूरी करने के लिए यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं देते है।
2. काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है।
3. माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।
4. कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
5. इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता है। जो लोगों के लिए घातक होता है।
Kamakhya Temple Mystery: यहां बड़ा ही अनोखा प्रसाद दिया जाता है। तीन दिन मासिक धर्म के चलते एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रख दिया जाता है. और तीन दिन बाद जब दरबार खुलते है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है. जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है. माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है. ये मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है. मां के सभी शक्ति पीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम माना गया है. इस कपड़े को अम्बुवाची कपड़ा कहा जाता है. इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
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Kamakhya Temple Mystery: यह देश के उन चंद हिंदू मंदिरों में से एक है, जहां पर आज भी जानवरों की बलि दी जाती है. इस मंदिर के पास एक कुंड है जहां पर पांच दिन तक दुर्गा माता की पूजा भी की जाती है और यहां पर हजारों की संख्या में भक्त लोग दर्शन के लिए प्रतिदिन आते हैं.
इस मंदिर में कामाख्या मां को बकरे, कछुए और भैंसों की बलि चढ़ाई जाती है और वहीं कुछ लोग कबूतर, मछली और गन्ना भी मां कामाख्या देवी मंदिर में चढ़ाते हैं. वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि प्राचीनकाल में यहां पर मानव शिशुओं की भी बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन समय के साथ अब ये प्रथा बदल गई है. अब यहां पर जानवरों के कान की स्किन का कुछ हिस्सा बलि चिह्न मानकर चढ़ा दिया जाता है. यही नहीं इन जानवरों को वहीं पर छोड़ दिया जाता है.
कामाख्या मंदिर की कहानी क्या है?
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती अग्निकुंड मे गिर कर अपना देह त्याग दी। तो भगवान शिव उनको लेकर घूमने लगे। उसके बाद भगवान विष्णु अपने चक्र से उनका देह काटते गए तो नीलाचल पहाड़ी में भगवती सती की योनि (गर्भ) गिर गई, और उस योनि (गर्भ) ने एक देवी का रूप धारण किया, जिसे देवी कामाख्या कहा जाता है।
कामाख्या देवी की पूजा कैसे होती है?
दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है. कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है.
कामाख्या देवी की विशेषता क्या है?
इस मंदिर के उल्लेख में तांत्रिक महत्व बताया गया है। मां सती के 51 शक्तिपीठ में से यह कामाख्या में आया हुआ शक्तिपीठ का सबसे ज्यादा महत्व बताया गया है। इसके अंदर मां सती यानी की मां भगवती की महामुद्रा का निर्माण किया गया है। इस मंदिर को तंत्र मंत्र की सिद्धियो के लिए श्रेष्ठ स्थल माना जाता है।
कामाख्या की पूजा करने से मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती है यह शास्त्र अनुकूल भी नहीं है वेदों में इसका कोई प्रमाण नहीं है लोक वेद अनुसार इसकी पूजा की जाने लगी है।
वेदों में बताया अनुसार भक्ति करना ही शास्त्र अनुकूल भगति कहलाता है और शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हमें सुख और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है वर्तमान में पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है जो हमें वेदों शास्त्रों के अनुसार ज्ञान और भक्ति बताते हैं जिसे करने से हमें हर दुख से निजात, हर बीमारी से छुटकारा मिल सकता है हम सुखी हो सकते हैं हमारी हर मनोकामना पूर्ण हो सकती है।
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वह पूर्ण संत कोई और नहीं जगतगुरु तत्वदर्शी बाखबर संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। जिन पर सभी भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियां भी सत्य सिद्ध हो रही हैं। वर्तमान में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी जाति, धर्म, मज़हब के लोग संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षित होकर सुख, समृद्धि और शांति से जीवन जी रहे हैं और अपने गुरु के आशीर्वाद से विश्व कल्याण के लिए दिन रात अथक प्रयास कर रहे हैं। विश्व के सभी बहन भाइयों से विनम्र निवेदन है कि अतिशीघ्र अनमोल पुस्तक ‘ज्ञान गंगा‘ अवश्य पढ़ें, जिसमें सभी भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियां लिखित हैं उन्हें पढ़ें, तथा ज्ञान समझें, नाम दीक्षा लें और मर्यादा में रहकर सतभक्ति करें, स्वयं को वर्तमान की और भविष्य की भयानक परिस्थितियों से सुरक्षित निकालें और अपने जीवन को और देश को समृद्ध बनाएं।
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