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International Mother Language Day: जानें कब और कैसे हुई इस दिन को मनाने की शुरुआत

International Mother Language Day

International Mother Language Day: मानव जीवन में भाषा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसी के माध्यम से दूरदराज के देशों तक भी संवाद स्थापित किया जा सकता है। मातृभाषा की मदद से न केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में सहायता मिलती है, बल्कि एक-दूसरे से बातचीत करना भी आसान हो जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास

International Mother Language Day: यूनेक्को की ओर से मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर 1999 को की गई थी और पहली बार वर्ष 2000 में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था। 21 फरवरी को ही यह दिवस मनाए जाने का सुझाव कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा किया गया था, जिन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुई नृशंस हत्याओं को स्मरण करने के लिए यह दिन प्रस्तावित किया था।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 की थीम

इस बार इस महत्वपूर्ण दिवस की थीम है ‘बहुतभाषी शिक्षा के लिए प्रोद्यौगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर’

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का उद्देश्य

International Mother Language Day: भाषा के महत्व को देखते हुए संस्कृति व बौद्धिक विरासत की रक्षा करने, भाषाई व सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार करने और दुनियाभर की विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा उनके संरक्षण के लिए यूनेस्को हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।

कितनी भाषाएं हैं इस वक्त आंकड़ों में दर्ज?

International Mother Language Day: संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में बोली जाने वाली करीब 6900 भाषाएं हैं और इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम है, लेकिन चिंता की बात यह है कि दुनियाभर में बोली जाने वाली इन 6900 भाषाओं में से करीब 43 फीसदी भाषाएं लुत्पप्राय हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर हफ्ते में एक भाषा गायब होती है और दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत खो देती है।

सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएं

आज विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में अंग्रेजी, जापानी, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी इत्यादि शामिल हैं।

वैश्वीकरण के इस दौर में बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण माना जाता है।

International Mother Language Day

प्रमुख बिंदु

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के विषय में:

  • इसकी घोषणा यूनेस्को द्वारा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी और जिसे विश्व द्वारा वर्ष 2000 से मनाया जाने लगा। यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष की भी याद दिलाता है।
  • 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था। इन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में वर्ष 1952 में हुई हत्याओं को याद करने के लिये उक्त तिथि प्रस्तावित की थी।
  • इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।

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संबंधित डेटा:

  • संयुक्त राष्ट्र (United Nation) के अनुसार, हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है और दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक तथा बौद्धिक विरासत खो देती है।
    • वैश्वीकरण के दौर में बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण है।
  • दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से लगभग 43% भाषाएँ लुप्तप्राय हैं।
  • वास्तव में केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह दी गई है। वैश्विक आबादी के लगभग 40% लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की है, जिसे वे बोलते या समझते हैं।
  • सिर्फ सौ से कम भाषाओं का उपयोग डिजिटल जगत में किया जाता है।

भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास:

  • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक (International Decade of Indigenous Languages) के रूप में नामित किया है।
    • इसके पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Year of Indigenous Languages) के रूप में घोषित किया था।
  • यूनेस्को द्वारा वर्ष 2018 में चांग्शा (Changsha- चीन) में की गई युलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) भाषायी संसाधनों और विविधता की रक्षा करने के लिये विश्व के देशों तथा क्षेत्रों के प्रयासों के मार्गदर्शन में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।

भारत द्वारा की गई पहलें:

  • हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy), 2020 में मातृभाषाओं के विकास पर अधिकतम ध्यान दिया गया है।
    • इस नीति में सुझाव दिया गया है कि जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम कम-से-कम कक्षा 5 तक (अधिमानतः 8वीं कक्षा तक और उससे आगे) मातृभाषा/भाषा/क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिये।
    • मातृभाषा में शिक्षा दिये जाने से यह छात्रों को उनकी पसंद के विषय और भाषा को सशक्त बनाने में मदद करेगा। यह भारत में बहुभाषी समाज के निर्माण, नई भाषाओं को सीखने की क्षमता आदि में भी मदद करेगा।
  • विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology) द्वारा अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
    • इस आयोग को सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये वर्ष 1961 में स्थापित किया गया था।
  • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन ( National Translation Mission- NTM) को मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की ज़्यादातर पाठ्य पुस्तकों का भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
  • लुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिये “लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण(Protection and Preservation of Endangered Languages) योजना।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भी देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देता और ‘लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्रीय विश्वविद्यालयों में केंद्र की स्थापना’ योजना के तहत नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सहयोग करता है।
  • भारत सरकार की अन्य पहलों में भारत वाणी परियोजना (Bharatavani Project) और भारतीय भाषा विश्वविद्यालय (Bharatiya Bhasha Vishwavidyalaya) को शुरू किया जाना प्रस्तावित है।
    • इसके अतिरिक्त उपराष्ट्रपति ने स्थानीय भाषाओं के उपयोग के लिये प्रशासन, अदालती कार्यवाही, उच्च और तकनीकी शिक्षा आदि अन्य क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है।
  • केरल सरकार ने जनजातीय बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिये नमथ बसई कार्यक्रम (Namath Basai Programme) चलाया है जो बहुत फायदेमंद साबित हुआ है।
  • मातृभाषा की सुरक्षा के लिये गूगल की परियोजना नवलेखा (Navlekha) प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय स्थानीय भाषाओं में ऑनलाइन सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाना है।
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